अनिता ललित
1.
न तुमने कुछ कहा, न ही मैनें...
मगर दोनों की खामोशी का
रूप कितना जुदा था...
तुमने कभी कुछ कहने की
ज़रूरत ही नहीं समझी .....
और मेरी आवाज़ गूँजती
रही ...
मेरी झुकी पलकों के
भीतर...
काश! सुन ली होती
तुमने...
तो अपने बीच इस तरह
चीखती ना होती....
ये खामोशी...........
2.
अनजाने में ही सही....
तुमने ही खड़े किए
बाँध... अना के....
वरना..... मेरी फ़ितरत
तो पानी -सी
थी....
3.
तुमसे जुदा हुई....
तो कुछ मर गया था
मुझमें...
जो मर गया था....
उसमें ज़िंदा तुम आज भी
हो.....
4.
ए खुदा मेरे ! मैं
करूँ तो क्या ?
ग़मज़दा हूँ मैं...
ना-शुक़्र नहीं...
एक हाथ में काँच सी
नेमतें तेरी...
दूजे में पत्थर दुनिया
के.....
दुनिया को उसका अक़्स
दिखा...
या मुझको ही कर दे
पत्थर....
5.
काश
ज़िंदगी ऐसी किताब होती......
कि जिल्द बदलने से
सूरत-ए-हाल बदल जाते...
मायूस भरभराते पन्नों को
कुछ सहारा मिलता....
धुँधले होते अश्आर भी
चमक से जाते....
ज़िंदगी को... कुछ और
जीने की वजह मिल जाती...
6.
हाथ उठाकर दुआओं
में...
अक्सर तेरी खुशी
माँगी थी मैनें...
नहीं जानती थी....
मेरे हाथों की लक़ीरों
से ही निकल जाएगा तू...
7.
आँखों
में चमक,
दिल में अजब सा सुक़ून
हो जैसे...
माज़ी के मुस्कुराते
लम्हों ने...
फिर से पुकारा हो
जैसे......
-0-
हाथ उठाकर दुआओं में...
ReplyDeleteअक्सर तेरी खुशी माँगी थी मैनें...
नहीं जानती थी....
मेरे हाथों की लक़ीरों से ही निकल जाएगा तू...........वाह क्या खूब कहा अनिता जी । जिन्दगी की हकीकतें कुछ यूं ही हुआ करती हैं।
बधाई।
नहीं जानती थी....
ReplyDeleteमेरे हाथों की लक़ीरों से ही निकल जाएगा तू...
sahi itne sunder bhav kam hi dekhne ko milte hain
badhai
rachana
अनजाने में ही सही....
ReplyDeleteतुमने ही खड़े किए बाँध... अना के....
वरना..... मेरी फ़ितरत तो पानी -सी थी....
बहुत सुंदर प्रस्तुति ...
सभी मार्मिक क्षणिकाएं ४ और ६ ने बहुत प्रभावित किया।
ReplyDeleteअनीता जी बधाई।
अपने आप में हर क्षणिका पूर्ण है ...बहुत सुंदर पर मुझे .. ये बहुत पसंद आई ....
ReplyDeleteअनजाने में ही सही....
तुमने ही खड़े किए बाँध... अना के....
वरना..... मेरी फ़ितरत तो पानी -सी थी...
शुभकामनायें!.
सीमा स्मृति जी, रचना जी, अनुपमा त्रिपाठी जी, कृष्णा वर्मा जी, अशोक सलूजा जी....मेरी क्षणिकाओं की सराहना व प्रोत्साहन के लिए तहे दिल से आभार ! :)
ReplyDelete~सादर!!!
हरेक क्षणिका बहुत ही उम्दा | बहुत खूब |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-ख्वाब क्या अपनाओगे ?
Bahut hi marmik abhivykti...bahut2 badhai...
ReplyDeleteए खुदा मेरे ! मैं करूँ तो क्या ?
ReplyDeleteग़मज़दा हूँ मैं... ना-शुक़्र नहीं...
एक हाथ में काँच सी नेमतें तेरी...
दूजे में पत्थर दुनिया के.....
दुनिया को उसका अक़्स दिखा...
या मुझको ही कर दे पत्थर....
बहुत बढ़िया क्षणिकाएं
गहरे भावों से भरी बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteए खुदा मेरे ! मैं करूँ तो क्या ?
ग़मज़दा हूँ मैं... ना-शुक़्र नहीं...
एक हाथ में काँच सी नेमतें तेरी...
दूजे में पत्थर दुनिया के.....
दुनिया को उसका अक़्स दिखा...
या मुझको ही कर दे पत्थर.... ...बहुत सुन्दर !!शुभ कामनाओं सहित ...ज्योत्स्ना शर्मा
सुन्दर क्षणिकायें..
ReplyDelete"हाथ उठाकर दुआओं में...
ReplyDeleteअक्सर तेरी खुशी माँगी थी मैनें...
नहीं जानती थी....
मेरे हाथों की लक़ीरों से ही निकल जाएगा तू... "
आह ! मर्म छू लिया। अन्य क्षणिकाएँ भी सुंदर। बधाई अनिता जी !
न तुमने कुछ कहा, न ही मैनें...
ReplyDeleteमगर दोनों की खामोशी का रूप कितना जुदा था...
तुमने कभी कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं समझी .....
और मेरी आवाज़ गूँजती रही ...
मेरी झुकी पलकों के भीतर...
काश! सुन ली होती तुमने...
तो अपने बीच इस तरह चीखती ना होती....
ये खामोशी...........
बहुत भावपूर्ण..सभी क्षणिकाएँ बहुत अच्छी लगी...बधाई..।
प्रियंका