पथ के साथी

Saturday, February 3, 2024

1401

 

1-मेरे राम

डॉ . शिप्रा मिश्रा

 


हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

जन- मन के अनुरागी राघव

हर्ष- विषाद समभागी राघव

कमल नयन को निरख रही

मैं कितनी बड़भागी राघव

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

एक कुलश्रेष्ठ समग्र स्वयंवर में

वही श्रेष्ठ संपूर्ण आगत वर में

विदेह की भू जो पावन कर दी

सौभाग्यवती होऊँ उस कर में

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

सूर्यवंश के अविजित उद्धारक

प्रजा स्नेही उनके प्रतिपालक

हैं धीर- वीर वे धनुर्धर योद्धा

ज्ञान विवेकी स्थितप्रज्ञ संचालक

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

उन्हीं से जनम कर उन्हीं में समाना है

उन्हीं की शक्ति से अंधेरे को हराना है

हे राम! मुझमें हों समाहित समादृत

भाव पुष्प से उन तक पहुँचना है

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

-0-

2-स्वाति बरनवाल

अकेलेपन से जूझते हुए

 


दुखी हृदय  ढूँढा  नहीं जाता

आसानी से मिल जाता है,

राह चलते,

सरेआम सड़कों पर!

जेब्रा क्रॉसिंग पर रुकी

गाड़ियों की तरह।

भीड़ से लदी हुई, सीटी बजाती हुई।

 

आषाढ़,

सावन,

भादो की बारिश में

भीगना तो है,

महज़ एक बहाना

अपने ऑंसुओं को छुपाने का!

 

अकेलेपन से जूझते हुए

वे चाहते हैं!

आशीर्वाद में मिलें एक जीवंत एकांत

जिसमें झेला जा सकें

लोगों का दंभ

पाई जा सके अकेलापन से निजात

और जिया, जा सके अपने हिस्से का एकांत।

 

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-0-

 

2-बुद्धि की रोटी

 

खैर! छोड़ो!

ये तो पहले की बात थी

जब लोग बहाते थे पसीने,

जोतते थे खेत,

और चलाते थे हल!

 

उपजाते थे अनाज,

खाते थे मेहनत की दो रोटी!

मिटती थी भूख उनकी

और वो रहते थे सदा तृप्त।

 

अब की बात और है!

 

आज सुखी है वही

जो चलाता है दिमाग

साइकिल के पहियों से भी तेज़!

और खाता है

केवल और केवल

बुद्धि की रोटी!

 

जिससे तृप्त होते हैं

एक बुद्धिजीवी के तन-मन,

उनकी अतृप्त, असंख्य इच्छाऍं!

-०-

स्वाति बरनवाल (अध्ययन)

 ग्राम - कठिया मठिया, , जिला - प० चंपारण, बेतिया (बिहार)-- 845307