पथ के साथी

Monday, July 6, 2020

1014-बनजारा जब लौटा घर को


बनजारा जब लौटा घर को
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

बनजारा जब लौटा घर को
         बन्द उसे सब द्वारा  मिले ।
बदले-बदले से उसको सब
         जीवन के किरदार मिले ।
नींद अधूरी हिस्से आई
सबको बाँटे थे सपने
गैर किसी को कब माना था
माना था सबको अपने ।
इन अपनों से बनजारे को
         घाव बहुत हर बार मिले ।
भोर हुआ तो बाँट दुआएँ
चल देता है बनजारा
रात हुई तो फिर बस्ती में
रुक लेता है बनजारा ।
लादी तक देकर बदले में
         सिर्फ़ दर्द -धिक्कार मिले।
आँधी, पानी, तूफ़ानों में
कब बनजारा टिकता है
मन बावरा कभी ना जाने-
छल-प्रपंच भी बिकता है ।
ठोकर ही इस पार मिली है
         ठोकर ही उस पार मिले
-0-[ शीघ्र प्रकाश्य संग्रह से]