बनजारा जब लौटा घर को
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बनजारा जब लौटा घर को
बन्द
उसे सब द्वारा मिले
।
बदले-बदले से उसको सब
जीवन
के किरदार मिले ।
नींद अधूरी हिस्से आई
सबको बाँटे थे सपने
गैर किसी को कब माना था
माना था सबको अपने ।
इन अपनों से बनजारे को
घाव
बहुत हर बार मिले ।
भोर हुआ तो बाँट दुआएँ
चल देता है बनजारा
रात हुई तो फिर बस्ती में
रुक लेता है बनजारा ।
लादी तक देकर बदले में
सिर्फ़
दर्द -धिक्कार मिले।
आँधी, पानी, तूफ़ानों में
कब बनजारा टिकता है
मन बावरा कभी ना जाने-
छल-प्रपंच भी बिकता है ।
ठोकर ही इस पार मिली है
ठोकर
ही उस पार मिले
-0-[ शीघ्र प्रकाश्य संग्रह से]