पथ के साथी

Showing posts with label मुरलीधर वैष्णव. Show all posts
Showing posts with label मुरलीधर वैष्णव. Show all posts

Monday, February 25, 2013

कचरा बीनती लड़की


-मुरलीधर वैष्णव
माँ ने भले ही जन्म दिया हो उसे
मजदूरी करते हुए
कचरे के आस पास
लेकिन फेंका नहीं उसे
कचरे के ढेर पर उसने
जैसे फेंक दिया था कई कई बार
बड़ी हवेली वालों ने
अपने ही खून को
बड़ी हो गई है अब वह
उठ कर मुँह अँधेरे रोजाना
निकल पड़ती है वह बस्तियों में
कचरा बीनने
उसके कंधे से लटका
यह पोलिथीन का बोरा नहीं
किसी योगिनी का चमत्कारी झोला है
जिसमें भर लेगी वह
पूरे ब्रह्माण्ड का कचरा
सीख लिया है उसकी आँखों ने
खोजना और बीनना
हर कहीं का कचरा
भाँप लेती है उसकी आँखें
आवारा आँखों को भी
और बीन लेती है वह
उनमें भरे कचरे को भी
शाम को जब रखती है वह झोला
कबाड़ी के तराजू में
उठती है उसमें से तब
तवे पर सिकती रोटी की महक
उगता है उसमें से
उसका छोटासा सपना
कचरा बीनती है वह
ताकि कचरा न रहे
हमारे बाहर
और हमारे भीतर भी

Sunday, September 9, 2012

केवल पाना प्यार नहीं (गीत)

मुरलीधर वैष्णव

मुरलीधर वैष्णव

मैं समझा कुछ तुम भी समझो
केवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
प्यार कोई व्यापार नहीं
मैं समझा....................

जब तक भीतर अहं भरा था
दर के बाहर प्यार खड़ा था
घट के पट जब खोल दिये
सब कुछ रोशन अँधियार नहीं

मैंने खोकर जिसको पाया
पारस जो राधा ने पाया
शीश उतारे बैठा हूँ भीतर
कबीरा अब इंतजार नहीं
मैं समझा........

रात चाँदनी जलती देखी
धूप कुँए में छुपती देखी
कहाँ थी तू जब टूटा तारा
इस हिज्र का कोई पार नहीं
मैं समझा..........
मैं टूटा नहीं जब टूटे वादे
तोड़ गई मुझे तेरी यादें
तेरी आहट नींद चुराती रही
तुम बिन प्रिय अभिसार नहीं
 मैं समझा..........
मेरी हथेली तेरी लकीरें
क्या बाँचे कोई तकदीरें
तेरी स्मित ही मेरी किस्मत
बाकी कुछ भी सार नहीं
मैं समझा कुछ तुम भी समझो
केवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
ये कोई व्यापार नहीं
-0-