पथ के साथी

Monday, May 9, 2011

नील कुवलय -से नयन



नील कुवलय -से नयन
-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

नील कुवलय -से
तुम्हारे
ये अधमुँदे नयन
कितने पावन
बुनते सपन 
डूबे मदिर
कल्पना के रंग में
और गहरी झील -सा
अपना यह मन ।
भोर की स्वर्ण किरने
लगी मुख चूमने,
आज फिर भी
ये नयन हैं अनमने
लहर -सुधियाँ
कई जन्मों से जुड़ी
रूप का कर रही
अनवरत आचमन ।

 फिर जनम
मिला हमें
तो फिर मिलेंगे ,
अधखिले ये कमल
फिर-फिर खिलेंगे
भूल नहीं पाया
अभी तक
उर यह आकुल
मृदु  स्पर्श
तरल स्मित की चितवन।