पथ के साथी

Thursday, January 31, 2019

672-मैं अकेला ही चला हूँ


मैं अकेला ही चला हूँ
      रमेश गौतम

मैं अकेला ही चला हूँ
साथ लेकर बस
हठीलापन

चित्र-रमेश गौतम
एक ज़िद है बादलों को
बाँध कर लाऊँ यहाँ तक
खोल दूँ जल के मुहाने
प्यास फैली है जहाँ तक
धूप में झुलसा हुआ
फिर खिलखिलाए
नदी का यौवन              

सामने जाकर विषमताएँ
समन्दर से कहूँगा
मरुथलों में हरीतिमा के
छन्द लिखकर ही रहूँगा
दर्प मेघों का
विखण्डित कर रचूँ मैं
बरसता सावन

अग्निगर्भा प्रश्न प्रेषित
कर चुका दरबार में सब
स्वाति जैसे सीपियों को
व्योम से उत्तर मिलें अब
एक ही निश्चय
छुएँ अब दिन सुआपंखी
सभी का मन
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