करूँ क्या होली है/ शशि पाधा
सुनो
रे वन के पंछी मोर
सखा!
न आज मचाना शोर
चुराने
आई तेरे रंग
करूँ
क्या, होली है
रंगरेज
की हुई मनाही
सब
ढूँढे हाट-बाज़ार
इन्द्रधनु
का दूर बसेरा
करे नखरे लाख हजार
छिड़ी
है तितली से भी जंग
करूँ
क्या होली है |
अम्बर
बदरा रंग उढ़ेले
बूँदें
बरसें सावन की
होरी
चैती अधर सजें फिर
सुध-बुध
खो दूँ तन-मन की
ज़रा- सी चख ली मैंने भंग
करूँ क्या, होली है |
चुनरी
टाँकूँ मोर पाँखुरी
माथे
बिंदिया चन्दन की
चन्द्रकला
का हार पिरो लूँ
रुनझुन
छेडूँ कंगन की
बजाऊँ जी भर ढोल मृदंग
सुनो जी, होली है |
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