पथ के साथी

Saturday, March 15, 2025

1456-करूँ क्या होली है

 

करूँ क्या होली है/ शशि पाधा

 


सुनो रे वन के पंछी मोर

सखा! न आज मचाना शोर

चुराने आई तेरे रंग

करूँ क्याहोली है

 

रंगरेज की हुई मनाही

सब ढूँढे हाट-बाज़ार

इन्द्रधनु का दूर बसेरा

 करे नखरे लाख हजार  

छिड़ी है तितली से भी जंग

करूँ क्या होली है |

 

अम्बर बदरा रंग उढ़ेले

बूँदें बरसें सावन की

होरी चैती अधर सजें फिर

सुध-बुध खो दूँ तन-मन की

 ज़रा- सी चख ली मैंने भंग

  करूँ क्याहोली है |

 

चुनरी टाँकूँ मोर पाँखुरी

माथे बिंदिया चन्दन की

चन्द्रकला का हार पिरो लूँ

रुनझुन छेडूँ कंगन की  

 बजाऊँ जी भर ढोल मृदंग

 सुनो जीहोली है |

 

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