पथ के साथी

Thursday, March 30, 2023

1308-मैं राजस्थानी हूँ

(राजस्थान दिवस 30 मार्च पर विशेष)

डॉ. निर्मल सैनी

 

धरती धोरां री का वासी

लोग जिसको बोले मारवाड़ी

हाँ मैं राजस्थानी हूँ

 


सुबह दही रोटी का कलेवा

दोपहर में सांगरी खींपोळी की सब्जी

छाछ राबड़ी सलाद में प्याज

रात को डिनर में

दिन की  बची सब्जी गुड़ दूध खानेवाला

हाँ मैं राजस्थानी हूँ

 

गर्मी में गली मोहल्लों बड़ के चबूतरों

और तपते सुदूर रास्तों पर प्याऊ लगा दूँ

आये बारिश तो खेत में बाजरा मूँग मोठ

काकड़ी मतीरा बीज दूँ

सर्दी की शामों में पोळी में

अलाव जलाकर हथाई करता

हाँ मैं राजस्थानी हूँ

 

गाय बिहाने पर पूरे मौहल्ले में दही बाँटना

होली दीवाली के अगले दिन

सभी के घर जाकर धौक मारना

रामदेव जी मेले में

कढावणी बिलोवणी खरीद लूँ

राखी पर बुआ और बहन को हर बार उडीकता

हाँ मैं राजस्थानी हूँ

 

गाँव गुवाड़ में मारदड़ी गुलीडंडा

कबड्डी खो-खो के पाळे  माँडूँ

गाँव गली में दौड़ लगाता

सभी जिलों की सेना भर्ती देख लूँ

सीमा पर छिड़ी लड़ाई अगर

सीने पर गोली खा लिपट तिरंगे में आता

हाँ मैं राजस्थानी हूँ।

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*कलेवा- नाश्ता

*हथाई- गपशप।

*पोळी - सामने हवादार खुला बरामदा।

*गाय बिहाने- गाय के बछड़ा देने पर।

*कढावणी बिलोवणी- दूध गर्म करने व दही बिलोने के पात्र।

*धौक मारना- चरण स्पर्श करना।

*मारदड़ी गुलीडंडा - स्थानीय खेल।

*पाळे माँडूँ-  पाले बनाऊँ।

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डॉ. निर्मल सैनी

वाइस प्रिंसिपल राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय

शिक्षा: एम. कॉम. पीएच. डी.

पता - डूंडलोद झुंझुनूं (राज)

मोबाईल न. 7690040827

ईमेल - drnksaini@gmail.com

1307

 

1-देवत्व की वेदना                                         

डॉसुशीला ओझा 

 

बिछा दो राहों में काँटे

पैरों में चुभकर चेतना का प्रस्फुटन होता है.. !! 

रक्त की लालिमा से 

इतिहास लिखे जाएंगे.. !! 

ईसा को शूली पर चढ़ाया.. 

शूली मानवता का हृदय हार बन गया, शूली चेतना का द्वार बन गया..!! 

सुकरात ने पीया विष का प्याला विष में अमृत्व का वरदान मिला.. !! 

मीरा ने विष प्याला पिया कृष्णत्व का अनुपम उपहार मिला..!! 

कृष्ण ने शाप को शिरोधार्य किया, पूर्ण ब्रह्मणत्व से अभिमंत्रित हुए..!! 

युवराज से नहीं वनवासी में छिपा

सृजनात्मकता का मर्यादा पुरुषोत्तम का भव्य रूप..! 

राधा जली विरहाग्नि में कृष्ण के नाम से जुड़कर राधाकृष्ण हुई..! 

अपना सम्मान का जयमाल रखो इसमें अहंकार के कांटे हैं.. !!

 साधना, तपस्या से वंचित करेंगे..!! 

सतकर्म करो, सद्भाव रखो, ज्ञान दीप जलाते रहो..!! 

यह मर्त्य लोक बड़ा अद्भुत है.. !! 

अग्नि परीक्षा में उतरने की हिम्मत रखो.. निखरोगे और 

 

संवरोगे, परिशीलन तुम्हारा होगा..!! 

 जीवितावस्था में नहीं मरणोपरांत भारत रत्न मिलेगा..! 

यह चिर सम्मान है, मानवता का..!! 

जीवितावस्था मे परम ब्रह्म वन -वन घुमता है.. !! 

मरणोपरांत रामचरितमानस लिखा जाता है..!! 

तर्क वितर्क के भावों से मानस परिष्कृत होता है..!! 

सम्मान में अभिमान निहित है,, मुझे मेरा कांटों भरा वह 

मार्ग दिखा दो.. !! 

गड़ते काँटों की चूभन से

लहू भी स्याही बनकर 

पन्नों के पृष्ठों पर चढ़कर 

इतिहास बन जाता हैं.. 

अतीत अपनी विरासत है..!! 

अतीत अपना गौरव है..!! 

 वर्तमान में तपकर ही सूरज ढलता है ,

फिर भी गगन में ताम्रवर्ण बन चमकता है 

 

सुशीला ओझा 

बेतिया, प. चम्पारण

-0- susheela.mishra1950@gmail.com

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2-हे जगजननी 

          प्रणति ठाकुर

 

हे जगजननी ,शिव की रमणी ,हम बच्चों पर दया करो 

 

आदिशक्ति ,जगमोहिनी माता ,तुम जननी त्रिभुवन सुखदाता ,

मोह जगत् का बाँधे सबको आसक्तों पर दया करो ,

हे जगजननी ,शिव की रमणी, हम बच्चों पर दया करो ..

 

त्रिविध- ताप , संताप हरो माँ,पापी को निष्पाप करो माँ ,

भव - बन्धन के तम से घिरा जो ,अशक्तों पर दया करो ,

हे जगजननी, शिव की रमणी ,हम बच्चों पर दया करो...

 

सब समझे जग बस माया है ,क्षणभंगुर  कंचन काया है,

ध्रुव - शाश्वत क्या समझ सके न,अनुरक्तों पर दया करो,

हे जगजननी, शिव की रमणी हम बच्चों पर दया करो...

 

मैं हूँ अकिंचन ,पापी, अधम हूँ,मोह - मदांध ,बुद्धि में कम हूँ ,

तुम जननी हो तारणहारी ,निज भक्तों पर दया करो,

हे जगजननी, शिव की रमणी ,हम बच्चों पर दया करो...

हे जगजननी, शिव की रमणी, हम बच्चों पर दया करो ।

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