1- सत्या
शर्मा ‘कीर्ति’
हाँ मैंने भी देखा
सूरज निकला
पहाड़ों के पीछे से
और बिखेर दी
जगत पर सुनहरी पीली धूप ।
पहाड़ों पर गिरते सिंदूरी रंग
और राग भैरवी गाती चिड़ियों को।
वो नन्ही -सी ओस की बूँद
जो दूब पर सोई थी
चली गई धरती की गोद में ।
तभी गूँजता है
दुर्गा सप्तशती का
मधुर सस्वर पाठ ।
और समृद्ध हो जाती हूँ मैं
ईश्वर और उसकी रचना से
एकाकार होकर ।।
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2-सीमा जैन
1
पर्वतों की चोटी,
सागर की तलहटी,
कई जगह थी रहने की,
छुपकर शांति से जीने की।
ईश्वर
जानते थे,
सब देवों को समझते थे,
मै कही भी जाऊँ,
इन्साँसां मुझे खोज ही लेगा।
मुझे चैन से नही रहने देगा,
बस एक ही ठिकाना है,
जहाँ उसे नही आना है,
वो उसका अपना अन्तस् है।
जो बुराइयों को छोड़ते जाते,
मै चमकने लगता हूँ,
सिर्फ उनको ही मिल पाता हूँ।
बहुत कम मुझसे मिल पाते है,
बाहर दौड़ते,
सबको रौंदते,
भटकते है।
मै सबके पास,
पर कुछ,
मुझ तक पहुचतें हैं।
2
सूरज
से आशा,
चाँद से भाषा,
शब्दों की माला,
है तेरे वास्ते।
तारों की चादर,
लहरों की पायल,
जुगनू ने रास्ते,
बनाये तेरे वास्ते।
रातों में दिए,
हाथों में लिए,
अंधेरे चीर दूँ,
मैं तेरे वास्ते।
प्यार का पल,
आज और कल,
दिल का सुकून,
बनूँ तेरे वास्ते।
तेरी आँखों में,
तेरी यादों में,
मेरा छोटा-सा घर,
तेरे दिल के रास्ते।
साँसों की डोर,
दुआओं के छोर,
कभी न खाली,
हों तेरे वास्ते।
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