पथ के साथी

Monday, July 4, 2016

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मेरा घर *
कमला  निखुर्पा

मेरा घर
बड़ी -बड़ी बल्लियों वाली छत
पिता की बाँहों की तरह
फूलों से महकता आँगन
ज्यों माँ का आँचल ।
मेरा वो घर जिसकी गोद में
मासूम बचपन ने देखे
खट्टे मीठे सपनें ।
परी नही थी मैं
फिर भी हर रोज
हाथों में ले जादू की छड़ी
हर कोने को सजाया करती थी ।
ब्रश और रंगों ने भी
की थी दीवारों से ढेरों बातें
क्रोशिया के फंदों से बने लिबास पहन
इतराती थी कुर्सियाँ
हँसते थी मेज
गेरू से लिपा माटी का पूजाघर
जिसमें उकेरे थे माँ की उँगलियों ने
ऐपण की लकीरें
वो स्वस्तिक और ॐ का चिह्न भी
बचा न सका

मेरे घर को
चलती रही
लालची कुल्हाड़ियाँ
कटते रहे  पेड़
आया सैलाब
बहा ले गया
सारी स्मृतियाँ
पुरखों की निशानियाँ
वीरान और उजाड़
मलबे से घिरा
अकेला खड़ा है
मेरा घर ।
जिसकी दहलीज पे
कदम रखते हुए भी
लगता है डर ।
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* कमला निखुर्पा का घर 2 जून-16 की रात  में बादल फटने से तबाह हो गया । घर के चार दृश्य।

(3 जुलाई 2016)
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[ बस इतना कहना है बहन कमला जी को कि आपका एक और मायका भी है, जहाँ आपका अग्रज रहता है। उस घर के द्वार सदा आपके लिए खुले हैं। -काम्बोज]
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