1-कुर्सी और कविता
कमला निखुर्पा
कुर्सी जीने नहीं देती
कविता मरने नहीं देती
चारों पायों ने मिलकर जकड़ रखा है
उड़ने को बेताब कदमों को
हाथों में थमी कलम
दौड़ने को विकल
कल्पना की घाटी में
जहां फूलों की महक में
कोई सन्देश छुपा है
जहां पंछियों के कलरव में
मधुर संगीत गूंजा है
अभी-अभी जहां बादलों ने
सूरज से आंखमिचौली खेली है
वो प्यारी सी रंगीन डायरी
जाने कब से उपेक्षित है
धूल से सनी कोने पे पड़ी
हर रोज नजर आती है
और मैं नजरें चुरा लेती हूँ
फाइलों के ढेर में डूबती जा रही
कविता
टूटती साँसों के बीच
कहीं दूर से इक हवा का झोंका
कानों में कुछ कह जाता है
बंद लिफ़ाफ़े से झाँककर
खिलखिला उठती है किताबें
किताबों में पाकर अपनी खोई
सहेलियों को
फिर से जी उठती है कविता
सारे बंधनों के बीच भी
आजादी के कुछ पल
पा लेती है कविता
जी लेती है कविता |
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इस
कविता को पढ़कर कुछ पंक्तियाँ अनायास कलम की नोक पर आईं, कुछ इस तरह-
2-जीने
को जी चाहे ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
कुछ
लोग हैं इतने शातिर
कि
जीने नहीं देते
और
कुछ है इतने प्यारे कि
प्राण
होठों पे आ
लगे
हों
मरने
को मन करे
तो
प्यार का इतना अमृत उडेल देते हैं कि
मरने
नहीं देते
,
क्योंकि
दुनिया उन्हीं के दम पर
इतनी
खूबसूरत है कि
सदियों
जीने को जी चाहे ।
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