1-दोहा
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
माटी की गुल्लक रहे ,या टूटे ,तकदीर।
यादों के सिक्के लिये ,हम तो बड़े अमीर ॥
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कविता
वो पेड़ - कमला निखुर्पा
सड़क किनारे सुन्दर सघन वो पेड़
रंगीन
चँदोवे -सा तना हरियाला वो पेड़।
पहन फूलों का कुरता, बाहें फैलाए,
पवन झकोरे संग, झूम पंखुडियाँ बिखराए,
धानी हरी कोंपलें मर्मर के गीत गाएँ,
लू के थपेड़ों को
मुँह चिढ़ाता है वो पेड़ ।
अलमस्त योगी- सा, नजर आता है वो पेड़।
ऊँची डालियों में, सारसों की बैठक जमी है
छुप।के बैठी पत्तों में, काली कोयल चकोरी है
कलरव को सुनसुन, हर्षाए है वो पेड़ ।
मौनी बाबा बन मगन, झूमे है वो पेड़ ।
चली आई तितलियाँ , मानो नन्हीं श्वेत
परियाँ
फूलों के संग-संग मनाए रंगरलियाँ
नचा पूँछ झबरीली, कूद पड़ी
गिलहरी
इस डाल कभी उस डाली, पगली सी मतवाली
नाजुक परों की छुवन, सिहर उठा है वो
पेड़ ।
बिखरे फूल जमीं पे बुने, सुन्दर कालीन
वो पेड़ ।
डाली -डाली पे बसा, तिनकों का बसेरा
अनगढ़ टहनियों पे, सुघड़ नीड प्यारा
काले कौए की नियत खोटी, जाने क्यों ना
पेड़ ?
नन्हीं चिरैया चीखी तब स्तब्ध हुआ वो
पेड़ ।
बगुलों की टोली आई, भागी फुलसुँघनी
नटखट अठखेलियाँ, खिलाए है वो पेड़ ।
अनगिन सहेलियाँ , मिलाए है वो पेड़ ।
कितनी उड़ानों को, समेटे है वो पेड़
कितनी थकानों को, मिटाए है वो पेड़
पेड़ अकेला, अनगिन परिवार
हर शाख ने बाँधे हैं बंदनवार
कंकरीटी फ़्लैट से, झाँके दो आँखें
सूने कमरों में, ढूँढती खोई पाँखें
शाख से टूटी वो कैसे मिलाए पेड़
घिर आई बदली जार-जार रोए है वो पेड़ ।
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