पथ के साथी

Monday, September 14, 2015

मन हिन्दी मुस्काई !



डॉ ज्योत्स्ना शर्मा


बरस बीतते एक दिवस तो

मेरी सुध आई

मन हिन्दी  मुस्काई ।



गिट-पिट बोलें घर बाहर सब

नाती और पोते

नन्ही स्वीटी रटती टेबल

खाते और सोते

खूब पार्टी घर में अम्मा

बैठी सकुचाई

मन हिन्दी  मुस्काई !



ओढ़े बैठे अहंकार की

गर्द भरी चादर

मान करें मदिरा का छोड़ी

सुधामयी गागर

पॉप,रैम्प के संग डोलती

बेबस कविताई

मन हिन्दी  मुस्काई !



अपनों में अपनापन लगता

झूठा- सा सपना

कहाँ छोड़ आए हो बोलो

स्वाभिमान अपना

गौरव गाथा दीन-हीन की

जग ने कब गाई

मन हिन्दी  मुस्काई !