पथ के साथी

Wednesday, December 4, 2013

नवस्वर

ज्योत्स्ना प्रदीप, जलन्धर
  
श्रीमती विमल शर्मा
मैं
राधा न सही
मीरा न सही                                                
पर क्या मुझे तुम्हारे                            
वंशी-स्वर सुनने का
कुछ हक नहीं ?
तुम तो
बाँस के खोखलेपन को भी
भर देते हो।
छिद्रों को भी तो
स्वर देते हो।
फिर मैं
इतनी खोखली भी नहीं
आओ !
वेणु समझकर ही
अधरों से लगा लो
साँसें भरकर तो देखो
शायद, मुझमें भी
कोई नव-स्वर सुनाई दे।
-0-

कविता के साथ दी गई श्रीमती विमल शर्मा (ज्योत्स्ना प्रदीप की माताश्री) जी  की पेण्टिंग के लिए आभार !