ज्योत्स्ना प्रदीप, जलन्धर
श्रीमती विमल शर्मा |
मैं
राधा न सही
मीरा न सही
पर क्या मुझे तुम्हारे
वंशी-स्वर सुनने का
कुछ हक नहीं ?
तुम तो
बाँस के खोखलेपन को भी
भर देते हो।
छिद्रों को भी तो
स्वर देते हो।
फिर मैं
इतनी खोखली भी नहीं
आओ !
वेणु समझकर ही
अधरों से लगा लो
साँसें भरकर तो देखो
शायद, मुझमें भी
कोई नव-स्वर
सुनाई दे।
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कविता के साथ दी गई श्रीमती
विमल शर्मा (ज्योत्स्ना प्रदीप की माताश्री) जी की पेण्टिंग के लिए आभार !