1-नन्दा पाण्डेय
1.
नहीं थी वो
दोस्ती की कीमत
मेरे दोस्त
थी एक चाहत
उन उड़ते लम्हों की
जो खुशबुओं की तरह
वक्त के साँचे में चीखकर
अपने होने की गवाही दे रहे थे
2.
अनकही मन की बात
अनखुली मन की गाँठ
जो न खुलती है
न बिखरती है
बस गुम्फन में बँधी
लिपटी रहती है
3
उसकी यादों की स्याही में डूबी
मेरी लेखनी जब शृंगार रचाती है
दूर कहीं उस विरहन के मन में
चाँद से मिलने की इच्छा गहराती है....!
घबराहट की ध्वनि
तेज हवा के झोंके
चाँदनी की काँपती सुधा
उसकी यह यात्रा
प्रेम की यात्रा थी...
5.
गिरि शिखर को चूमकर
सूर्य उत्तेजित हो गया है
प्रणय के ऐसे खुले निवेदन पर
आकाश का मुख
लाज से रक्त-रंजित हो गया है।
6.
तुम्हारे नेह के गुलाबों की
सुरभित पँखुड़ियाँ
मेरी स्मृतियों की किताबों के
पृष्ठों
के बीच
आज भी दबी हुई है ।
7.
वसंतकालीन बयार लेकर
पूर्ण सौंदर्य के साथ
प्रकृति भी आ गई अब तो..!
पर, तुम नहीं
आए
जब पतझड़ देकर ही जाना था,
तो तुम आए ही क्यों थे
पलभर को भी नहीं सोचा
कि, कितना
दुख होगा
उस वसंत समीर के
छिन जाने के बाद ।
8.
इस जमीं से आसमाँ तक
बर्फ़ ही बर्फ़ है
जमती हुई साँसों में
पल रही एक आस है
आह -सी उठी है दिल में
खामोशी और उदासी है
वक़्त की तमाम जोखिमों के बीच भी
खिल उठने की सहसा
उपजी
ललक है...।
9.
दोस्ती
ऐसी हो
जैसे
अँजुरी में हो पानी
समुद्र
और कुएँ का
10.
भावना के विहग आज
उन्मुक्त हो परों को पसारे
चल पड़े हैं नीलाभ नभ में
चहकते हुए आज,
मान का पर्दा ओढ़े, जाने कब से खड़ी है
चूमने प्रिय के चरणआज
रागिनी भी चल पड़ी है,
युगों का विरह,क्षणों का मेल
यही तो है बस,चाहत का खेल
11.
सुबह के गले मफलर
सूरज अलसाया सा
धूप भी कुछ सकुचाई,अलसाई है
आज फिर तुम्हारी याद आई है...।
-0-
2-परमजीत कौर 'रीत', श्री गंगानगर (राज.)
ज़मीं पे अर्श का मंज़र बनेगा
ये दिवला जब कभी दिनकर बनेगा
चलेंगे रोज़ तो बिहतर
बनेगा
यूँ कच्चा राह भी पत्थर बनेगा
उदासी को हराएगी वो जब भी
खुशी की आँख में सागर बनेगा
बने तस्बीह का मोती जो सँभले
जो बहका लफ्ज़ तो नश्तर बनेगा
ज़माना प्रश्न जितने भी उठा ले
हमारा वक्त ही उत्तर बनेगा
सबक ठोकर का रखना
याद ए 'रीत'
ये मंज़िल तक तेरा रहबर बनेगा
ग़ज़ल-2
समंदर के ज़िग़र को चीरती हैं
ये माना तेग हैं लहरें नई हैं
हदों में जब घुटन का बढ़ता मलबा
जमी नदियाँ भी बँधे तोड़ती
हैं
तलातुम और हवाओं की खिलाफ़त !
चलेंगी कश्तियाँ ज़िद पर अड़ी हैं
पसे-दीवार तन्हा शब की गोदी
क़मर की सिसकियाँ औंधी पड़ी हैं
करेंगी अब बग़ावत झाँझरें भी ?
कसो इनको ये ज्यादा बोलती हैं
हुए आँखों के जब से पाँव भारी
बताना 'रीत' वो सोई कभी हैं ?