1-पाँच तत्त्व का मेल
डॉ हरदीप कौर सन्धु
धीरज
संजम
सौंदर्य
सिदक
तथा
शर्म
पाँच तत्त्व की मिस की मिट्टी
गूँध गूँध कर
उस घुमियार (कुम्हार)ने
घड़ी तेरी
सीरत और सूरत
ऐ औरत !
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2-जीवन की संजीवनी -जीवन की
संजीवनी .......
शब्दों में आराधना , अर्थ मिला बाज़ार ।
अकथ-कथा है पीर की , घर में भी लाचार ।।1
पग-पग पर मिलते यहाँ ,दुःशासन उद्दण्ड,
बैठे हैं धृतराष्ट्र क्या , लिये हाथ में दण्ड ।।2
जब लालच की आग को,मन में मिली पनाह ।
बेटी का आना यहाँ ,तब से हुआ गुनाह ।।3
आज अभागन कोख की, बेटी करे पुकार ।
जीने दे मुझको ज़रा, माँ ऐसे मत मार ।।4
सपने में भी पूछते ,प्रश्न यही दो नैन ।।
मुझे कोख में मार माँ ! कैसे पाया चैन ।।5
लाचारी का आँख ने ,देखा ऐसा दौर ।
बेबस मुनिया माँगती ,रही व्याध से ठौर ।।6
जीवन की संजीवनी , आप करे संघर्ष ।
देख दशा, तेरी दिशा , शोक करें या हर्ष ।।7
पिंजरे की मैना चकित,क्या भरती परवाज़ ।
कदम-कदम पर गिद्ध हैं ,आँख गड़ाए बाज़ ।।8
कठपुतली बन कर रहूँ ,कब तक तेरे साथ ,
डोरी रख ले थाम कुछ, दे मेरे भी हाथ ।।9
पावनता पाई नहीं ,जन -मन का विश्वास ।
सीता को भी
राम से , भेंट मिला वनवास ।।10
कोमलता , शालीनता ,गहने हैं ,ले
मान ।
लेकिन कर प्रतिकार अब , मत सहना अपमान ।।11
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3-एक कविता महिला दिवस
पर
डॉ शिवजी श्रीवास्तव
हजारों हजार साल से,
औरतें कर रही हैं पूजा/
रख रही हैं व्रत-
पतियों की लम्बी उम्र के लिए
माताएँमना रही हैं मनोतियाँ
कर रही हैं अनुष्ठान-
बेटों की सलामती के लिए,
बहनें कर रही हैं प्रार्थनाएँ-
भाइयों की खुशहाली के लिए,
महान है हमारा देश/
महान है हमारी संस्कॄति.
पर दोस्तो,
किसी को मालूम हो तो बतलाना,
महान संस्कॄति वाले हमारे महान देश में,
बहनों की खुशहाली/माताओं की सलामती-
और पत्नियों की लम्बी उम्र के लिए भी-
किसी व्रत,पूजा,प्रार्थना या अनुष्ठान का विधान है क्या ?
यदि नहीं,
तो कैसे सुखी और सलामत रहेंगी-
माँ,बहिन और बेटियाँ।
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4-महिला दिवस –डॉ पूर्णिमा राय
1
किसी से भी नहीं कम है ,अजी औरत ज़माने में
किया जीवन समर्पित है घरौंदे को बनाने में
दिखाती हुनर है अपना मनोबल के निशाने से
रही है प्रेम की सूरत सदा सीरत दिखाने में।।
2
किया जीवन समर्पित है घरौंदे को बनाने में
दिखाती हुनर है अपना मनोबल के निशाने से
रही है प्रेम की सूरत सदा सीरत दिखाने में।।
2
कभी बेटी कभी पत्नी कभी जननी हमारी है
बड़ी नाजुक बड़ी चंचल बड़ी भोली ये नारी है
मिटाना नाम न इसका कभी तुम मन के आँगन से
यही सत्यं यही शिव है यही सुन्दर तुम्हारी है।।
3
सुनाई सरगमें लहरों कभी झरनों नदियों ने
उसी की शान शौकत में लिखें है गीत कवियों ने
रहेंगी दास्ताने जब तलक हैं ‘पूर्णिमा ‘रातें
सुनोगे तो यी जानो गवाही दी है सदियों ने।।
बड़ी नाजुक बड़ी चंचल बड़ी भोली ये नारी है
मिटाना नाम न इसका कभी तुम मन के आँगन से
यही सत्यं यही शिव है यही सुन्दर तुम्हारी है।।
3
सुनाई सरगमें लहरों कभी झरनों नदियों ने
उसी की शान शौकत में लिखें है गीत कवियों ने
रहेंगी दास्ताने जब तलक हैं ‘पूर्णिमा ‘रातें
सुनोगे तो यी जानो गवाही दी है सदियों ने।।
4
गुमनाम अँधेरे से नहीं ,लगता अब तो डर।
बंद गली में कर लिया ,जबसे रैन बसर।।
कुटिल नीति को त्याग कर,सबके संग चले ;
मन के किवाड़ खोलकर ,नारी करे सफर।।
5
विश्व तिरंगा लहराऊँगी मैं भारत की
नारी हूँ।
हर पल आगे बढ़ती जाऊँ नहीं रही बेचारी
हूँ।।
चट्टानों सा जिगरा मेरा दुश्मन थर-थर काँप
रहा;
कर्म धर्म से भाग्य बनाऊँ नहीं किस्मत से
हारी हूँ।।
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इनकी कुछ कविताएँ सुनने के लिए लिन्क
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