पथ के साथी

Tuesday, February 23, 2016

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वक्त का पहिया  
 कमला घटाऔरा

जीवन की व्यस्तता ने
इतने भी पल न दिए
पूछो हाल उनका
छोड़ आ जिन्हें पीछे
परदेस आकर
बढ़ने को आगे
जमाने के साथ
वक्त इतना निर्मम नहीं
देता है हर क्षण
सब को उसके हिस्से का
तक़सीम करके
क्यों समझने लगे
खुद को कुछ ख़ास तुम
वक्त ठहर जागा
तुम्हारे लिए कुछ देर को
एक और मौका देने को
की पा लो प्यार उनका,
तुम्हारी ख़ुशी के वास्ते
जिन्होंने चुन लिया वीराना
उगाकर जो सूर्य तेरे घर का
चले गए उस पार
न आने के लिए।

बैठे रहे थे जो राह में
मिलने की चाह लिये
बाँटने को खुशियाँ तुम्हारीं
पलक पाँवड़े बिछा
अब याद आई उनकी ?
किसे करके फोन
पूछते हो हाल
अपनों का, बेगानों का
जिन के घर आँगन
चहकते घूमते थे
तुतलाते बतियाते
सवालों की झड़ी लगाते
सब छोड़कर चले गए
वो दिल से चाहने वाले
निःस्वार्थ प्यार लुटाने वाले
वो वुज़ुर्ग अपने
अपनों से बढ़कर बेगाने
विदा हो गए
एक एक करके
फिर न लौटने के लिए
चेतना था वक्त से पहले
अब बैठो मलो हाथ
वक्त का पहिया
उल्टा नहीं घूमता। 
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