माँ का मायका
खो गया था माँ का मायका
जिस दिन खोई थी मेरी नानी
नानी के साथ-साथ खो गया था
वह नक्शा जिस पर अंकित थे
माँ की पहली किलकारी
पहले क़दम और पहले शब्द के नक़्श
युवा होती माँ के सतरंगी सपनों
शरारतों ज़िदों प्यार और मनुहार का बही ख़ाता
कैसे ममता में डुबो-डुबोकर सुनाती थी नानी
इकलौती बेटी के लड़कपन के किस्से
न चाहते हुए भी जल के राख हो गई
नानी के साथ सारी बही
ग़म ओढ़े गुमसुम सी माँ ठंडी साँसें भरती
औचक सिर हिलाती बुदबुदाने
लगती
माँ तो माँ ही होती है
भले वह तैराक न हो पर जानती है तारना
डरना क्यों? मैं हूँ ना! कहकर
ताल में उतरने का देती है हौसला
माँ ऐसा भरोसा जो कभी डूबने नहीं देता
ख़ुद अनजान होती है उड़ान से
पर हमें सपनों के पंख लगाकर
दिन-रात उड़ाती है सातवें आसमान तक
मेहरबानियों से भरा रखती है घर द्वार आले दीवार
किसी से न तो कुछ माँगने का ढब जानती है
न किसी बात को मना करने का
बस आठों पहर होठों पे रखे असीस बाँटती है
दरियां खेस भले बुनना जाने न जाने पर
रिश्ते बुनने में बड़ी माहिर होती है
यादों को फ़ोलती माँ फिर-फिर सुबक उठती
उसकी आँखों में
आँसुओं के संग
तैर रहे हैं नानी के संग के प्रसंग
बीता हुआ प्रत्येक क्षण कसमसा रहा है अंतस को
माँ को यूँ दुख में निढाल देख
अचानक युवा हो गए मेरे काँधे
उसकी आँखों में उमड़ते सैलाब को
बाँध लगाने को प्रयासरत थीं मेरी हथेलियाँ
माँ को सीने से लगाकर सुनने लगा था मेरा सीना
माँ की अपूरणीय क्षति की चित्तकार
निर्जीव सी खोखली हुई माँ के
दुख की थाह को मापने को जुटी थीं
मेरी नाक़ाम कोशिशें
हर बार शून्य ही मिल रहा था
मेरे अंदाज़ों का परिणाम
बार-बार माँ को धीरज बँधाने को
ख़ुद से सटाते हुए सोच रही थी
कि नानी के गम में यूँ घुल-घुलकर
कहीं चली गई जो मेरी भी माँ
तो कौन सटाएगा मेरी तरह
मुझे सांत्वना देने को अपने सीने से।
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