1-देह नेह की बातें
ज्योत्स्ना प्रदीप
देह-नेह की बात करो ना
बाहों का सहारा दे दो
चाँद की आभा सभी लूटते
मुझको बस तारा दे दो ।
नदियों ने छुपा ली जवानी
न सागर ने मन की जानी
मेघों की न
कीअभिलाषा
मुझको एक धारा दे दो ।
सुना - प्रेम धधकती अगन है
सबको इसी की
लगन है
महा अनल से लेना है क्या?
मुझको इक
अंगारा दे
दो ।
घर की चाह में भटके किधर
आ जाना कभी
मेरे भी नगर
प्यार की ईंटे लिये खड़ी हूँ
विश्वास का गारा दे दो ।
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2-इन्दु गुलाटी
परदों से झाँकती ज़िदगी
अनंत संभावनाओं की तलाश में
जैसे तैयार हो रही हो
एक सफल उड़ान भरने को...
एक परितृप्त श्वास से भरपूर
और नवीन सामर्थ्य से परिपूर्ण
ये उठी है नया पराक्रम लेकर
नवजीवन के प्रारम्भ का विस्तार छूने।
परिधियों से बाहर आने की आतुरता
आसक्ति नहीं, प्रतिलब्धता
समीक्षा नहीं,अनंतता
विस्तारित व्योम को बस छू लेने की लालसा.....
परदों से झाँकती ज़िन्दगी।।