पथ के साथी

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Monday, November 28, 2016

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नन्हा भरतू  और भारतबन्द
डा कविता भट्ट
(दर्शन शास्त्र विभाग,हे०न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड)
सुबह से शाम तक, कूड़े से प्लास्टिक-खिलौने बीनता नन्हा भरतू
किसी कतार में नहीं लगता, चक्का जाम न भारत बंद करता है
दरवाजा है न छत उसकी वो बंद करे भी तो क्या
वो तो बस हर शाम की दाल-रोटी का प्रबंध करता है
पहले कुछ टिन-बोतलें चुन जो दाल खरीद लेता था
अब उसके लिए कई ग्राहकों को रजामंद करता है
बचपन से सपने बुनते- बैनर इश्तेहार बदलते रहे
गिरे बैनर तम्बू बना, सर्द रातों में मौत से जंग करता है
सड़क पर मिले चुनावी पन्नो के लिफाफे बनाकर
मूँगफली-सब्जी-राशन वालों से रोज अनुबंध करता है
कूड़े की जो बोरी नन्हे कंधे पर लटकते-लतकते फट ग
बस यही खजाना उसका, टाँके से उसके छेद बंद करता है
इतनी बोतलें- हड्डियाँ कूड़े में, यक्ष प्रश्न है- उसके जेहन में
बेहोशी-मदहोशी या नुक्कड़ की हवेली वाला आनंद करता है
निश्छल भरतू पूछ बैठा, कूड़े में नोट? आखिर क्या माजरा है?
तेरे सवाल का पैसा नहीं मिलना, अम्मा बोली- काहे दंद-फंद करता है ?
एक सवाल लाखों का उनका, तेरे से क्या उनकी क्या तुलना?
बापू तेरे बूढ़े हो गए हैं अब
उम्र ढली कूड़े में, तू क्यों अपना धंधा मंद करता है
इसीलिए नन्हा भरतू कूड़े, दाल और रोटी में ही खोया है
किसी कतार में नहीं लगता, चक्का जाम न भारत बंद करता है

Wednesday, May 20, 2015

आजकल




1-कविता
सूख गई संजीवनी जड़
मंजु गुप्ता (वाशी , नवी मुंबई )


भोर किरण जो
सेवाओं से सवेरा लाई
समाज - देश उसका ऋणी
संग - साथ , जग में
खुशियों की कोहिनूर बनी
वे किरण थी अरुणा शानबाग।


लेकिन एक दिन
दुःख के मेघ मँडराए
जंजीरों में बाँधके उसे
जहरीले नाग ने
लूटी उसकी लाज
बेरहमी का ये गूँगा समाज।

नीर में ढला तूफ़ान
कोमा तम में छाया प्रात
रिसते रहे साँसो के घाव
झेले चार दशक दो साल
तन - मन का अशक्त
घर वालों ने छोड़ाा  साथ।


मानवता के मसीहे
हुए उसके अपने
करने लगे उसका
जीवन  रौशन
सँवारते कई हाथ
करे पूरा देश गुमान


लेकिन कह न पाई
अपनी व्यथा-कथा
पतझड़ी जीवन तरु से
धीरे -धीरे झड़ी सारी पत्तियाँ
सूख गई संजीवन से संजीवनी जड़
लेकर अन्तिम साँस ।

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2-आयोजन



आभा सिंह के लघुकथा संग्रह " माटी कहे" का विमोचन समारोह
दिनांक. 14मई2015,4 बजे स्पंदन महिला साहित्यिक एवं शैक्षणिक संस्थान जयपुर द्वारा लेखिका आभा सिंह के लघुकथा संग्रह माटी कहे का विमोचन पिंकसिटी प्रेस क्लब में  मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला बिहारी, विशिष्ट अतिथि प्रो.नन्दकिशोर पाण्डेय, अध्यक्ष डॉ. हेतु भारद्वाज, स्पंदन अध्यक्ष नीलिमा टिक्कू, लेखिका आभा सिंह एवं डॉ नवलकिशोर दुबे द्वारा किया गया।
   
    श्रीमती रूबी खान द्वारा सरस्वती वंदना की गई। कार्यक्रम के आरम्भ में स्पंदन अध्यक्ष नीलिमा टिक्कू ने मंचस्थ अतिथियों ,सभागार में उपस्थित साहित्यकारों एवं मीडिया कर्मियों का स्वागत करते हुए लेखिका आभा सिंह को बधाई दी।नीलिमा टिक्कू ने कहा कि आभा सिंह के लघु कथा संग्रह में सामाजिक विडम्बनाओं पर आधारित 86 लघुकथाएँ  सम्मिलित हैं ।आभाजी ने नपे तुले शब्दों में जीवन के विभिन्न पहलुओं की कड़वी सच्चाइयों से पाठकों को इस तरह रू--रू करवाया है कि पाठक गहन आत्ममंथन करने लगता है।सहज,सरल व रोचक भाषा शैली में लिखी ये पुस्तक पाठकों को बाँधे रखने में पूर्णतःसक्षम है।सीमित शब्दों में सशक्त प्रस्तुति लघुकथा की विशेषता होती है और आभाजी उस कसौटी पर खरी उतरीं हैं ।दर्पण के अक्स रोचक लघुकथा पढ़ी गई।समाज को आईना दिखाती घुकथाओं हेतु आभाजी को शुभकामनाएँ दीं।
 कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ.नवल किशोर दुबे ने आभासिंह की घुकथाओं में ध्यात्म का स्पर्श बताते हुयथार्थ की बुनियाद एवं संवेदना की गहन दृष्टि को रेखांकित करती ऐसी कथाएँ बताईं, जिनमें गहन जीवन दर्शन का संयोग इन कथाओं को विस्तृत भाव भूमि प्रदान करता है।उन्होंने पुस्तक की नीर- क्षीर समीक्षा प्रस्तुत की
       मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला बिहारी जी ने अपने उद्बोधन में कहा किमाटी कहे की छोटी छोटी कथाएँ हमारे आस- पास का ही जीवन सत्य है।ये रचनाएँ बतातीं हैं कि जो यथार्थ है वह क्या है।ये लघुकथाएं वे दृष्टि हैं जो परतों केभीतर झांक लेती हैं ।ये पाठकों की सोच पर दस्तक देतीं हैं ।यह महज लक्षण या अर्थ व्यक्त नहीं करतीं,यह संभावनाएँ भी व्यक्त करतीं हैं।
       विशिष्ट अतिथि प्रो. नन्द किशोर पाण्डेय ने लघु कथा संग्रह को  समय की माँग व पूर्ति बताते हुए।उल्लेखनीय बताया। स्पंदन सदस्य सुश्री नेहा विजय,डॉ. रत्ना शर्मा ने आभा सिंह की लघु कथाओं का पाठ किया। लेखिका आभा सिंह ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताया।उन्होंने कहा कि मन के आवेगों के तहत सोचने की गूढ़ प्रक्रिया से गुजर कर भाव आकृति में ढल जाते हैं।सोच की नवीनता,कथन की सपाट शैली, संवाद का चातुर्य, व्यंग्य का पुट  और प्रस्तुतीकरण का चुटीला रूप यही है लघुकथा का गढ़न।इन्ही मानको को ध्यान में रखकर प्रस्तुत संग्रह की लघुकथाओं को गढ़ने का प्रयास किया है।पूरा संग्रह जैसे मेरी लघुकथा यात्रा है।
 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा कि लेखिका आभासिंह. ने अपने लघुकथा संग्रह की कथाओं में वन की विसंगतियों का चित्रण किया है।बडी़ कहानियों के मुकाबले में लघुकथाओं को पिरोना मुशकिल होता है; लेकिन आभा जी का लेखन -कौशल है और वो इसमें पूर्णतः सफल रहीं हैं। कार्यक्रम केअंत में धन्यवाद प्रस्ताव. उपाध्यक्ष माधुरी शास्त्री जी ने दिया।कार्यक्रम का सफल संचालन सचिव डॉ. संगीता सक्सेना ने किया।
-0-सम्पर्क-आभा सिंह-09928294119 ;08829059234