पथ के साथी

Sunday, March 28, 2021

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रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

 अंकुर फूटे आस के

मुखड़ा हुआ अबीर लाज से,


अंकुर फूटे आस के
,

जंगल में भी रंग बरसे हैं,

दहके फूल पलाश के। 

मादकता में आम डाल  की,

झुककर हुई विभोर है,

कोयल लिखती प्रेम की पाती,

बाँचे मादक भोर है। 

खुशबू गाती गीत प्यार के,

भौरों की गुंजार है ,

सरसों ने भी ली अँगड़ाई ,

पोर-पोर में प्यार है। 

मौसम पर  मादकता छाई ,

किसको अपना होश है,

धरती डूबी है मस्ती में ,

फागुन का यह जोश है।

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2-फगुनिया भोर 

विभा  रश्मि 

 

सिंदूरी डिबिया 

बिखर गई

रंग गई नीला अम्बर ,

तरबूज़ की रसीली फाँक थामे 

कितना भोला - भला सा लगा 

गुलाबी कपोलों में फागुन 

 

आगंतुक खग -वृन्दों के झुंड

तलैया -तट के

वृक्षों की शाख़ों पे बैठ

कलरव करते  -

कानों में माधुर्य रस घोलते रहे ,

वन में घूम -घूम कर मटराया 

घुमक्कड़ पवन ।

 

उदधि की चंचल तरंगों ने

मृदुल थपकियाँ  देकर

तट के कंकड़ों 

और बलुका कणों  पर 

उत्सवी गीत लिखे 

देख सखी ! फाग सजे ।

 

'भोर' फाग की 

आत्म विभोर हो -

सूर्य से माँग लाई भाँग ।

और

हौले - हौले  चलकर 

ताँबे की थाली में 

अभ्रक-भरा गुलाल ले आई  ,

फिर ठाड़ी हो गई

वो लजीली बन ...।

 

उसकी भीगी अलकों से 

टपकती ओस -बूँदें सतरंगी

छिटककर  बिखर गईं  

उसे निरख -निरख

फागुनिया भोर मुस्का दी -

'कालिदास ' की रूपवती नायिका- सी ।

 

सिंदूरी डिबिया बिखर गई .

रंगों  की द्यूति से खिलखिला पड़ा 

नीलाभ व्योम  

सुनहरे प्रभात के कितने  ठाठ 

देख सखि - 

पछुआ  बयार  ने चँवर डुलाया    

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3- कमाल कर रही हो

‌‌‌संध्या झा

 


अपनी शर्तों पर जी रही हो ।

 तो और खूबसूरत लग रही हो ।

 इतना जब्त कैसे है तुम में 

 जो ये कमाल कर रही हो ।

 अपनी दुनिया खुद ही बनाई है तुमने

 और खुद ही इसे बेमिसाल कर रही हो ।

  कोई और होता तो टूट जाता ।

  पर तुम तो हर सवाल का जवाब बन गई हो।

   इतना जब्त कैसे है तुम में 

  जो यह कमाल कर रही हो ।

  तुम अनोखी हो क्या  ?

  आसमान से उतरी हो क्या ?

   जो बहुत कुछ आसान कर रही हो।

   इतना जब्त कैसे है तुम में 

    जो यह कमाल कर रही हो ।

   सूरत और सीरत दोनों पाए है तुमने 

   रास्तों से भी मंजिल का काम ले रही हो।

   इतना जब्त कैसे है तुम में 

   जो यह कमाल कर रही हो ।

  अपनी शर्तों पर जी रही हो तो 

   और खूबसूरत लग रही हो  ।।

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  फ्लैट नंबर- 203 सत्येंद्र कांपलेक्स, खाजपुरा,

 बेली रोड ,मौर्य पथ, पटना (बिहार ) 800014 

Email -sandhyajha198@Gmail

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4-उड़ान बाकी है

 अर्चना राय

     


 राहें तो है बहुत मिल चुकी

पर मनचाही  मंज़िल पाना अभी बाकी है।

 चलना धीरे-धीरे तो सीख लिया

पर हवा से बातें  करना अभी बाकी है।

हौसलों की उड़ान बाकी है......

 

 सफलताएँ तो बहुत मिल चुकीं,

पर  मील का पत्थर मिलना बाकी है।

ख़्वाब तो पूरे बहुत हुए पर

अंतर्मन की गहराई में

 दबा सपना अभी बाकी है

 हौसलों की उड़ान बाकी है....

 

 पल पल बीत रही जिंदगी

 पर खुलकर जीना बाकी है

खुशियाँ तो हैं बहुत पर

मन का सुकून पाना बाकी है।

 पाने को मंजिल मनचाही

ज़िद पर आना बाकी है।

 हौसलों की उड़ान बाकी है.....

 

 प्रेम का रूप देखा है तुमने

 शक्ति रुप दिखाना बाकी है

 नारी कोमल है, कमज़ोर नहीं

दुनिया को दिखाना बाकी है

 हौसलों की उड़ान बाकी है......

 

 एक अध्याय गुर गया पर

 पूरा ग्रंथ अभी बाकी है।

 मेरा  समर्पण तो देख लिया तुमने

 पर प्रसिद्धि देखना बाकी है।

हौसलों की उडान बाकी है....

 

 माँ हूँ, बेटी हूँ, पत्नी भी हूँ

पर अपनी पहचान बनाना बाकी है

 जाने लोग मुझे मेरे दम से

 ऐसा नाम कमाना बाकी है

 हौसलों की उड़ान बाकी है......

 

 कलम हाथ में थाम तो ली है।

 पर धार लगाना बाकी है

 याद रखे दुनिया जिसको

 वह इतिहास लिखना बाकी है।

 हौसलों की उड़ान बाकी है.....

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अर्चना राय, भेड़ाघाट जबलपुर( मध्य प्रदेश)

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