पथ के साथी

Saturday, December 9, 2023

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    मंथन

शशि पाधा

 

अपना-अपना भाग्य लिखाए

धरती पर हैं आते लोग

विधना जो भी संग बँधाए

गठरी भर- भर लाते लोग

 

किस स्याही से खींची उसने

हाथों की अनमिट रेखाएँ

वेद_ पुराण पढ़े हर कोई

भाग्य नहीं पढ़ पाते लोग

 

बीते कल की पीड़ा बाँधे

आज’ तो जी भर जी न पा

भावी की चिंता में डूबे

जीवन-स्वर्ण लुटाते लोग

 

रिश्तों  के इस  मोहजाल में

मन पंछी व्याकुल- सा रहता

जग जंजाल छोड़के सारा 

मुक्त नहीं हो पाते लोग

 

कौन है अपना, कौन पराया

किसने कैसी रीत निभाई

मन तराजू मन ही पलड़े  

तोल- मोल कर जाते लोग

 

सुंदर मन सुंदर यह जगति

सुंदर सृष्टि रूप-अनूप

मन दर्पण हो जिसका जैसा

वैसा चित्र   बनाते   लोग

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