पथ के साथी

Thursday, February 14, 2019

880-मुक्ताकण

डॉ.कुमुद रामानन्द बंसल
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विविधता -भरे जग में मत रोको सृजन
मत बाँधो सीमाओं में हृदय-स्पन्दन
प्रार्थना बना दो इस जग का हर क्रन्दन
तप,सत्य-साधना में बन जाओ कुन्दन
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ज़िन्दगी की ढीली तारों को कस दे
या रब !जीवन में कुछ तो रस  दे ।
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उम्मीद नहीं, मंज़िल नहीं,कारवाँ नहीं
सत्य हो साथ तो किसी की परवाह नहीं
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जग की कटुता ने जब -जब रुलाया
परिन्दे को नई परवाज़ का ख़्याल आया।
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