बैठ गए कबीर
रश्मि विभा त्रिपाठी
एक दिन मैं और मेरे मित्र
बैठकर पी रहे थे चाय
इसी बीच
मैंने उनसे पूछी राय-
यार! लगभग सभी विधाओं में
लिख डाला
फिर भी आज तक
नहीं बन पाया निराला
कितनी किताबें छपवा चुका हूँ
फिर भी जहाँ था, वहीं रुका हूँ
अब मैं
व्यंग्य लिखना चाहता हूँ
काका हाथरसी- सा
दिखना चाहता हूँ
कोई विषय सुझाओ
वे बोले- पहले मुँह धोकर आओ
क्या समझते हो
काका हाथरसी होना आसान है?
मुँह खोला और चबा लिया,
व्यंग्य कोई बनारसी पान है?
व्यंग्य लिखना
तुम्हारे बस का काम नहीं है
दबाकर चूस लो,
ये कोई दशहरी आम नहीं है
फिर भी
लिखना चाहो अगर
तो व्यंग्य, लिखो उस अफसर पर
जो देता है सरकारी सेवा
गले तक ठूँसता रहता है
रिश्वत का मेवा
खाकर घूस
टहलता है जाके रूस
करता है पद का दुरुपयोग
जिससे त्रस्त रहते हैं लोग
व्यंग्य उस कर्मचारी पर लिखो,
जिसे फाइल आगे सरकाने में कष्ट है
सर से पाँव तलक
जो निहायत ही भ्रष्ट है
व्यंग्य उस वकील पर लिखो
जिसे बस पैसा चाहिए हर तारीख का
न्याय के बदले पकड़ा देता है
पीड़ित के हाथ में कटोरा भीख का
व्यंग्य उस जज पर लिखो
जो अद्भुत फैसले सुनाता है
अपराधी को रिहाई
और बेकसूर को फाँसी पर लटकाता है
व्यंग्य उस अध्यापक पर लिखो
जो बच्चों को पढ़ाता है
जिसको खुद
क ख ग नहीं आता है
व्यंग्य लिखो उस प्राइमरी स्कूल पर
जहाँ बहुत है शोषण
मिड डे मील से कर रहे हैं
हेडमास्टर अपना भरण- पोषण
व्यंग्य उस कवि पर लिखो
जो कवि- सम्मलेनों में जाता है
धाक जमाता है
मंच पर चढ़ता है
कविता के नाम पर चुटकुले पढ़ता है
व्यंग्य उस श्रोता पर लिखो
जो अच्छी रचना को करता है इग्नोर
फूहड़ गज़ल पर कहता है- वन्स मोर
व्यंग्य उस गीतकार पर लिखो
जो गीत लिखता है अधपके, कच्चे
जिन्हें सुनकर बिगड़ रहे हैं
आजकल के बच्चे
व्यंग्य उस निर्माता पर लिखो
जो बनाता है फिल्म
जिसमें अश्लीलता का ही है इल्म
व्यंग्य उस चुप्पी पर लिखो
जिसे साधे हुए है सेंसर
सभ्यता को हो गया है
थर्ड स्टेज का कैंसर
व्यंग्य उस निर्णायक- मंडल पर लिखो
भूलके साहित्य के पीरों को
जो पुरस्कार देता है
चमचागीरों को
व्यंग्य उस नेता पर लिखो
जो हमारे देश में है
जिसके कारण
जनता पशोपेश में है
जो वोट लेता है
चोट देता है
कुल मिलाकर लेता ही लेता है
कभी कुछ नहीं देता है
व्यंग्य उस मंत्री पर लिखो
जिसको प्यारी है केवल कुर्सी
जिसके राज में सब रो रहे
हर ओर है मातमपुर्सी
आम आदमी चाहे
खड़ा हो जाए सर के बल
इनसे नहीं मिल सकता,
भगवान से मिलना है सरल
व्यंग्य उस विधायक पर लिखो
जो क्षेत्रवासियों हेतु कुछ नहीं करता है
सरकारी मद से
केवल अपना घर भरता है
व्यंग्य उस डॉक्टर पर लिखो
जो पैसे लेके बनाता है नकली रिपोर्ट
क्रिमिनल हास्पिटल में आराम फरमाते हैं
पेशी पर नहीं जाना पड़ता कोर्ट
व्यंग्य उस चोर पर लिखो
जिसने उसके खाते से पैसे चुराए
बनाकर एटीएम का क्लोन
बीमार पिता के इलाज के लिए जिसने
घर गिरवी रखके लिया बैंक से लोन
व्यंग्य उस थानेदार पर लिखो
जो घटना के तीन महीने बाद
दर्ज करता है एफआईआर
तब तक बचने के सारे इंतजाम
इत्मीनान से कर लेता है गुनाहगार
व्यंग्य उस इंजीनियर पर लिखो
जो पुल बनाता है
उद्घाटन से पहले ही
जो भरभराकर ढह जाता है
व्यंग्य उस संत पर लिखो
फाइवस्टार जिसकी कुटिया
जो डुबा रहा है
धर्म की लुटिया
व्यंग्य उस दुकानदार पर लिखो
जरा- सी नजर हटी
दोगुने दाम पर
माल पकड़ा देगा मिलावटी
मैंने मित्र से कहा-
आपने तो हिला दिया कलेजा
व्यंग्य लिखने को
आप ही सा चाहिए भेजा
आपकी बातों से
झनझना गए मन के तार
आप ही हैं
असली व्यंग्यकार
चला रहे थे जिस घड़ी,
आप व्यंग्य के तीर
लगा कि आकर सामने
बैठ गए कबीर।
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