पथ के साथी

Friday, March 29, 2019

886


साँझ खिली है- अनिता ललित
1
तपती धरा पे
बूँदों जैसे,
क्यों तुम आए,
कहाँ गए?
2
मेघ-मल्हार के
गीतों जैसी,
गूँज रही मैं
सदियाँ बीती।
3
बहती हूँ
ख़ामोश नदी सी,
कंकड़ बन क्यों
आ गिरते हो?
4
झील बनी हैं
आँखें मेरी,
चाँद के जैसे
तुम ठहरे हो!
5
रात हो गई
फिर से भारी,
खुली यादों की
बंद अलमारी।
6
मुस्काऊँगी
खिलूँगी,  मेरा वादा!
फूल -सा चेहरा
ओस का पहरा।
7
सहरा जीवन
तुम हो मंज़िल,
पाँव थके
न छाले फटते।
8
साँझ खिली है
दूर गगन में,
माँग पे मेरी
अधर तुम्हारे।
-0-

(26/03/2019, 19.40)


Saturday, March 23, 2019

885


इंसान पेड़ नहीं बन सकता कभी
रश्मि शर्मा

पेड़ अपने बदन से 
गिरा देता है 
एक-एक कर सारी पत्तियाँ
फिर खड़ा रहता है 
निस्संग
सब छोड़ देने का अपना सुख है
जैसे
इंसान छोड़ता जाता है
पुराने रिश्ते-नाते
तोड़कर निकल आता है
उन तन्तुओं को
जिनके उगने, फलने, फूलने तक
जीवन के कई-कई वर्ष
ख़र्च किए थे
पर आना पड़ता है बाहर
कई बार ठूँठ की तरह भी
जीना होता है
मोह के धागे खोलना
बड़ा कठिन है
उससे भी अधिक मुश्किल है
एक- एककर
सभी उम्मीदों और आदतों को
त्यागना
समय के साथ
उग आती है नन्ही कोंपलें
पेड़ हरा-भरा हो जाता है
पर आदमी का मन
उर्वर नहीं ऐसा
भीतर की खरोंचें
ताज़ा लगती है हमेशा
इंसान पेड़ नहीं बन सकता कभी।

-0-

Tuesday, March 19, 2019

884


कैसे आज मनाऊँ होली
भावना सक्सैना

कैसे आज मनाऊँ होली
सरहद पर फिर चली है गोली,
धरा का आँचल लाल हुआ 
मूक बाँकुरों की हुई बोली।

क्या उल्लास पर्व का दिल में
आँगन उजड़े, टूटी टोली,
लाल गँवाकर जानें अपनी 
खून से खेल गए हैं होली।

आँख गड़ाए कुर्सी पर जो
गिद्ध न समझे खाली झोली,
कानों में पिघले सीसे- सी
उतरे नेताओं की बोली।

अश्रुधार निरन्तर बहती
तीखा लवण जिह्वा पर घोली,
पकवानों का स्वाद कसैला
शान्त पड़े हैं सारे ढोली।

रंग तीन बस दिए दिखाई
सुबह आज जब आँखें खोलीं,
श्वेत, हरे केसरिया जग में
कोयल जयहिंद कूकती डोली।
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Saturday, March 16, 2019

883


कलम गा उनके गीत
डॉ. सुरंगमा यादव

कलम गा उनके गीत
जिन्होंने बदली रीत
दीपक बनकर
अँधियारों से लड़ते
मरहम बन
पीड़ाएँ हरते
समय भाल पर
अंकित करते जो पद-चिह्न
बढ़ाते सबसे प्रीत
स्वकी अंधी दौड़ छोड़कर
परहित में सर्वस्व त्यागकर
नष्ट-भ्रष्ट कर जीर्ण पुरातन
सिंचित करते हैं मानव-म
जग के हित जिनका
मौन हुआ जीवन संगीत
तूफानों से घिरे रहे जो
फिर भी सदा अडिग रहे जो
औरों को करने को पार
मोड़ गये नदिया की धार
बाधाओं को करें सदा जो
साहस से विपरीत
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