1-वह कागज़
डॉ. शैलजा सक्सेना
जाने कितने कागज़ रँगकर
उस कागज़ तक मैं पहुँचूँगी
जिससे तेरी खुशबू आए।
सब कुछ लिखा, झूठ लग रहा
बिना साँस की देह -सरीखा
प्राण कोई अर्थों के भर
दे
ऐसा गीत कहाँ गाया है?
गला रुद्ध हो, स्वर भीगा
हो
शब्दों के पाँवों विछोह
की
पायल भी इतनी भारी हो,
फिर मन के व्याकुल पनघट से
वापस नहीं कभी जा पाए।
जाने कितने कागज़ रँगकर
उस कागज़ तक मैं पहुँचूँगी
जिससे तेरी खुशबू आए॥
तुझ को गाया तो मैंने
है,
पर बिन देखे झूठा गाया
अंदाज़ों के शंख बजाए
सच क्या वह स्वर, तुझ
तक आया?
तर्कों, व्याख्याओं की
गठरी
मंदिर-मस्जिद खूब पसारी
पर झोली में सिक्का सच
का
एक कभी ना मैंने पाया।
अब तो कुछ धन, जन यह पाए।
जाने कितने कागज़ रंगकर
उस कागज़ तक मैं पहुँचूँगी
जिससे तेरी खुशबू आए॥
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2-प्यार के चहबच्चे-
डॉ.शैलजा सक्सेना
रात भर फेंकता रहा आकाश
रुई की पौनियाँ,
हवा का चरखा
कातता
तार -तार!
सवेरे ने देखा
सफेद चादरों से ढकी
धरती,
रो रही है बिलखकर..
सूरज की बिन्दियाँ
जाने कहाँ गिरा आईं .....
फिर एक नया दिन....किरणें आई,
सफेद चादर
तार-तार,
आसमान
चुप,
सूरज की बिन्दिया ने
मनुहार से देखा
धरती
के सीने पर
बह निकले
प्यार के कई चहबच्चे
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