1-कुण्डलियाँ-अनिता ललित
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अर्पित भाव-सुमन
तुझे, है माँ तुझे प्रणाम
नयनन छवि तेरी बसी, होठों पर है नाम
होठों पर है नाम, करूँ विनती बस इतनी
आखर-आखर गढ़ूँ, पीर हर दिल हो जितनी
तेरा हो आशीष, रहे हर तन-मन हर्षित
देना ज्ञान का दान, तुझे मन-गागर अर्पित ||
2
छाई सरसों की महक, बाजे मन के तार
धरा आज मुस्का रही, करे पीत-सिंगार
करे पीत-सिंगार, गगन भी है हर्षाया
धरा-मिलन को आज,
पहनकर किरणें आया,
चला शरद मुख मोड़, विदा की बेला आई
द्वार खड़े हेमंत, ख़ुशी कलियों पर छाई ||
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2-गीत- मंजूषा
मन
आज मन कुछ अनमना है
गीत गाओ...
आँख से दरिया बहा है
गीत गाओ...
भूल बैठे वो अगर तो
भी भला है,
ज़िन्दगी से अब हमें भी
क्यों गिला है।
एक अपने ने छला है
गीत गाओ....
आज मन कुछ....
बात दिल की कौन समझे
अब यहाँ पर,
खूब रोए हैं तुझे हम
आजमाकर।
दर्द का रिश्ता बना
है
गीत गाओ।
आज मन कुछ.....
आज मन कुछ अनमना है
गीत गाओ,
आँख से दरिया बहा है
गीत गाओ।
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