भीकम सिंह
भूली-सी याद
1
सुन मेरे
अवकाश-
प्राप्त मित्र
अनछुएँ ना रह जाए
वो मनचाहे इत्र
जिन्हें पुरवा
लेकर आती
और पछुवा
उड़ा जाती
तैर जाते स्मृति में
उन रिश्तों के चित्र ।
अब उम्र की दीवार
खटकती
आँखों में चाँदनी
पैर पटकती
उर की तड़पन
ज्यों की त्यों
फिर बहानों की
बारिश क्यों
ईर्ष्या से मर जाने दो
जो हैं लोग विचित्र ।
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2
आज
मेरा मन
और उदास भाव
कर रहे याद
तेरे नयनों की प्यास ।
हर पल
वो ही डगर
और कहकहे
अब खामोशी मगर
आ रही है रास ।
सुखद स्मृति
भेंट, पत्र
और सूखा गुलाब
फिर ताज़ादम
होकर
जगाते झूठी आस ।
छूट गया
दुनिया भर का
याद रहा
नून-तेल भर का
खोई शुगर ने मिठास ।
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