पथ के साथी

Thursday, July 2, 2015

आराम न भाया है



रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
रात और दिन
काम ही काम
आराम न भाया  है;
किसी मशीन के
 पुर्ज़े-जैसा
ये जीवन पाया है
        कब जिए
        अपने लिए हम
        याद नहीं पड़ता है ;
        हर पल मेरी
        यादों में अब
        काँटे-सा गड़ता है ।
इन काँटों को
सेज बनाकर
मन को बहलाया है ।
        जिधर गए
        आरोप बहुत से
        स्वागत करने
        आए;
        खाली आँचल
        देख हमारा
        भरने को
        अकुलाए ।
आँचल भरने पर
दिल- दरिया ये
भर-भर आया है ।
        खाली हाथ
        चले थे घर से
        आज भी
        खाली हाथ ;
        शाम हो गई
        चले गए सब
        छोड़-छोड़ कर साथ;
दिन-रात जिया है
रिश्तों को
फिर धोखा खाया है ।
-0-