रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
रात और दिन
काम ही काम
आराम न भाया है;
किसी मशीन के
पुर्ज़े-जैसा
ये जीवन पाया है ।
कब जिए
अपने लिए हम
याद नहीं पड़ता है ;
हर पल मेरी
यादों में अब
काँटे-सा गड़ता है ।
इन काँटों को
सेज बनाकर
मन को बहलाया
है ।
जिधर गए
आरोप बहुत –से
स्वागत करने
आए;
खाली आँचल
देख हमारा
भरने को
अकुलाए ।
आँचल भरने पर
दिल- दरिया ये
भर-भर आया है ।
खाली हाथ
चले थे घर से
आज भी
खाली हाथ ;
शाम हो गई
चले गए सब
छोड़-छोड़ कर साथ;
दिन-रात जिया है
रिश्तों को
फिर धोखा खाया
है ।
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