पथ के साथी

Friday, September 1, 2017

तूने ओ जिन्दगी!

 डॉ.कविता भट्ट

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गर्म पानी में डुबोकर

थपकी से कूट-कू कर

सूती कपड़े की तरह

रगड़-रगड़कर

बड़े इत्मिनान से

और फुर्सत में धोया

रंगीन-चमकीले सपनों को

तूने ओ जिन्दगी!

रंग फीके पड़ गए

हैरानी यह है कि

इन्हें न सहेज सकने का

इल्जाम भी मेरे ही सिर आया।

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