पथ के साथी

Tuesday, December 3, 2024

1441

 

माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी



1
खोलो मोखे मन के
धूप मुहब्बत की
आने दो छन- छनके।
2
दरवाज़ा खड़का है
शायद वो आए
मेरा दिल धड़का है।
3
होठों पे आह नहीं
तुम जब अपने हो
कोई परवाह नहीं।
4
तुमको जिस पल पाया
हर इक मुश्किल का
मैंने तो हल पाया।
5
हर रोज सँवरने दो
मन में चाहत का
अहसास न मरने दो।
6
तेरे ही पास मुझे
हरदम रखता है
तेरा अहसास मुझे।
7
बोले ये दिल धक से
मुझको अपना तुम
कहते हो जब हक़ से।
8
जीवन को सींच रही
मीत मुहब्बत ये
जो अपने बीच रही।
9
वो पास नहीं होता
मुझको जीने का
आभास नहीं होता।
10
तुम मुझको गैरों में
हरगिज़ ना गिनना
पड़ती हूँ पैरों में।

-0-

Thursday, November 21, 2024

1440

1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा

 


अँधेरे में टटोलती हूँ

बाट जोहती आँखें

मुट्ठी में दबाए

शगुन के रुपये

सिर पर धरे हाथों का

कोमल अहसास

सुबह के भजन

संध्या की

आरतियाँ

लोकगीतों की

मीठी धुन

छत पर रखी

सुराही

दरी और चादर का

बिछौना

इमली, अम्बियाँ

चूर्ण की गोलियाँ

खो-खो, कीकली

रिब्बन परांदे

गुड़ियाँ –पटोले

फिर से टटोलती हूँ

निर्मल स्फटिक- सा

अपनापन

कुछ हाथ नहीं आता

वक्त निगल गया

या उनके साथ सब चला गया

जो चले गए

दूर--- कहीं दूर

किसी अनजान

देश में

और  फिर

कभी न लौटे।

-0-

2-कुछ शब्द बोए थे - रश्मि विभा त्रिपाठी

 


जैसे अभाव के अँधेरे में

हो सविता!

खेतों में किसान ने

जब बीज बोए

तैयार करने को फसल

दिया था जब खाद- पानी

तो गेहूँ की सोने- सी बालियों की

चमक में 

उसे ऐसी ही हुई थी प्रतीति,

 

मैं नहीं जानती मेरी भविता

मेरे अतृप्त जीवन ने तो

मन की 

बंजर पड़ी जमीन पर

अभी- अभी कुछ शब्द बोए थे

भावों की खाद डालकर

अनुभूति के पानी से सींचा ही था

कि देखा- 

कल्पवृक्ष- सी

वहाँ उग आई कविता।

 

और ऐसा लगा

मुझको जो चाहिए

जीने के लिए 

मेरे कहने से पहले

पलभर में वो सबकुछ लाक

मेरे हाथ पर रखने आ गए पिता।

-0-



Saturday, November 16, 2024

1439

 

दोहे - विभा रश्मि (गुड़गाँव)


1

ओसारे में रात भर, भीगा पीत गुलाब।

रूप दिया फिर भोर ने, छिटका अमित शबाब।।

2

बिछे डगर में शूल जब, करें पाँव में छेद।

करके लहूलुहान भी, जतलाते ना खेद।।

 3

रिश्ते सब ओछे हुए, कैसे पले लगाव।

चिंदी- सा ईंधन बचा, कैसे जले अलाव।।

4

फुलवारी क्यारी कहे, सुन ले मन की बात। 

बिखरा सरस सुगंधियाँ, हँस ले सह आघात।। 

5

सुबह की नरम धूप खा, झूमी हरियल घास।

पीत रंग का पुष्प खड़ा, जगा रहा था आस।।

6

जन्मों का बंधन बँधा, जीता मन का साथ।

फिर क्यों मेरे हाथ से, छूटा तेरा हाथ।।

7

चलें हवाएँ विष भरी, दूषित हर जलधार।

कुदरत भी है सोचती, किसने ठानी रार।।

8

सघन कुहासा है तना, धुँधली हुई उजास।

सभी नज़ारे छुप गए, मनवा हुआ उदास।।

9

जल जिस साँचे में पड़े ,लेता वह आकार।

ऐसा ही सज्जन सदा, करते हैं आचार।।

10

किरणें नहलाती रहीं, उपवन झील पहाड़।

तिल जैसे नन्हे घटक , बनना चाहें ताड़।।

-0-

Thursday, November 14, 2024

1438-तुम्हारा भाव!

 रश्मि 'लहर

 


प्रिय!

तुम्हारी प्रतीक्षा में

जला देती हूँ कुछ दीप

अनायास

तुलसी के आसपास!

 भर जाता है रोम-रोम में

तुलसी की  सुरभि से लिपटा

तुम्हारा भाव!

पत्तियों की ओट से झाँकती

जलती लौ

हर लेती है मेरा हर अभाव!

 मेरे पास रह जाता है,

मेरे शब्दों का पल्लव

स्वप्कोष का कलरव

और

बस यूँ ही तुम्हारे बिना..

मेरा बीतना

सिखा देता है 

अपने प्रेम के दरख्त को

सजल आवेग से सींचना!

 मुझे सहेज लेती है प्रेम की पावन भक्ति

जीत लेती है मुझे तुम्हारे नेह की 

अकल्पित दृष्टि!

 मेरी मूक पलकों से बह पड़ती है

तुम्हारे निश्छल वियोग की अभिव्यक्ति!

छलछला पड़ती है

मेरे साथ-साथ,

तुम्हारी सुरभित स्मृतियों से ढकी 

संपूर्ण सृष्टि!

Friday, October 18, 2024

1437-रतन टाटा : संस्कृति से साक्षात्कार

 

विजय जोशीपूर्व ग्रुप महाप्रबंधकभेल

  जीवन में आगमन से पूर्व एवं पश्चात् दो आयाम ऐसे हैं, जो आदमी के जीवन की दशा और दिशा दोनों निर्धारित करते


हैं। इनमें से पहला है- विरासत जिसे आप संस्कार या मूल्यों की थाती कह सकते हैं तथा दूसरा है- आपकी मानसिकता, जो आपके आचरण का आधार है। पहला ईश्वर प्रदत्त है, जबकि दूसरा आपके अपने हाथ में है और इसका आपकी पदप्रतिष्ठापैसे से कोई लेना देना नहीं। यह आवरण के अंदर अंतस् की खोज का सफ़रनामा है। इसके साकार स्वरूप को स्वीकार कर संस्था हितार्थ उपयोग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत होता है टाटा समूह के सोच में जो इस प्रकार है :

·        26/11 को ताज होटल में घटित आतंकी हमले के दौरान कर्मचारियों ने कर्तव्य का जो उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया, उसकी सराहना हार्वर्ड विश्वविद्यालय तक में एक केस स्टडी रूप में समाहित की गई यह जानने के लिए कि क्यों टाटा कर्मचारियों ने डरकर भाग जाने के बजाय कार्यस्थल पर ही रहकर अतिथियों की रक्षा करने के लिए अपनी जान तक की बाजी लगा दी। उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के जोखिम भरे काम को बखूबी अंजाम दिया। यह वह पहेली थी, जिसे मनोवैज्ञानिक तक समझ पाने में असफल थे। अंतत: जो निष्कर्ष निकले, वे इस प्रकार थे।

1-  ताज समूह ने बड़े शहरों से अपने कर्मचारी चुनने के बजाय उन छोटे- छोटे शहरों पर ध्यान केन्द्रित किया, जहाँ पर पारंपरिक संस्कृति आज भी दृढ़तापूर्वक सहेजी गई है।

 2-  टाटा ने चुनने की प्रक्रिया में केवल टापर्स को वरीयता न प्रदान करते हुए, उनके शिक्षकों से यह जानना चाहा कि उनके छात्रों में से कौन- कौन अपने अभिभावकोंवरिष्ठजनशिक्षकों तथा अन्य के साथ आदरपूर्ण व्यवहार करते हैं।


3-
 भर्ती के पश्चात् उन्होंने नवागत नौजवान कर्मचारियों को यह पाठ पढ़ाया कि कंपनी के मात्र कर्मचारी बनाने के बजाय वे कंपनी के सामने अपने अतिथियों के सांकृतिक राजदूतशुभचिंतक तथा हितचिंतक बनाकर पेश हों।

 4- यही कारण था कि 26/11 आतंकवादी हमले के दौरान जब तक समस्त अतिथियों को सावधानीपूर्वक बाहर नहीं निकाल लिया गयाएक भी कर्मचारी ने उस कठिनतम परिस्थिति में जान बचाने के लिये बाहर निकालने या भाग जाने की कोशिश नहीं की। इस तरह मूल्यपरक प्रशिक्षण का ही प्रभाव यह रहा कि टाटा- समूह आज सारे संसार के सामने एक मिसाल बनाकर खड़ा है, जहां होटलिंग एक प्रोफेशन या व्यवसाय न होकर एक मिशन अर्थात् विचार के पर्याय की भाँति स्थापित है। यह सोच पूरे संसार के सामने पर्यटन उद्योग के लिए सीखकर अनुपालन के लिए अब तक का सबसे बड़ा उदाहरण है।   

 भलाई कर भला होगा बुराई कर बुरा होगा

कोई देखे न देखे पर ख़ुदा तो देखता होगा 

 -0-

 

Sunday, October 13, 2024

1436

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1


मुट्ठी से सरक रहे

रेत सरीखे अब

रिश्ते यों दरक रहे।

2

आँसू की धार बही

हमको रिश्तों की

जब भी दरकार रही।

3

फिर नींद नहीं आई

हमने जब जानी

रिश्तों की सच्चाई।

4

बनकर तेरे अपने

लोग दिखाएँगे

केवल झूठे सपने।

5

किसका मन पिघल रहा?

इंसाँ ही अब तो

इंसाँ को निगल रहा!

6

जग से कुछ ना कहना

जग है सौदाई

चुपके हर गम सहना।

7

देखा तुमने मुड़के

जाते वक्त हमें

हम जाने क्यों हुड़के।

8

दो दिन का मेला है

जीवन बेशक पर

हर वक्त झमेला है।

9

घबराता अब दिल है

रिश्ते- नातों से

हमको यह हासिल है।

-0-

Friday, October 11, 2024

1435

 

1-रात प्रहरी /  डॉ. सुरंगमा यादव

 


रात प्रहरी

कैसे आऊँ मैं प्रिय

लाँ  देहरी

वर्जनाएं तोड़ भी दूँ

जग से मुखड़ा मोड़ भी लूँ

पर न चाहूँगी प्रियवर!

मैं कोई आक्षेप तुम पर

मैं रहूँ जब  दूर तुम से

चाँदनी का ताप सहती

चाँद का सहती उलाहना

मन मेरा भी कमलसा है

और भाती है-

मधुप की मधुर गुनगुन

पर नहीं मैं चाहती हूँ

प्रेम को बंदी बनाना

-0-

 


2-स्वाति बरनवाल

 1-हितैषी

 


वे हमारे हितैषी बनकर आ

उन्होंने बताया कि तुम्हारे

हाथों में यश है और 

पैरों में बेड़ियाँ

मैं निहाल हो उठी,

उन्होंनें मुझे मेरे अस्तित्व का भान कराया।

 

उन्होंने कहा- तुम तीर हो

ख़ूब दूर तक जाओगी,

बस! साथ जुड़ी रहो!

दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करोगी।

 

उन्होंने कहा- मैं तुम्हारें पैरों में 

बेड़ियाँ नहीं रहने दूँगा,

मैं उन्हें काट फेकूँगा।

मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।

 

मैंने दाँतों तले उँगली दबा और 

अपने पैरों को थोड़ा पीछे खींच लिया।

 

ठहरो!

वे शिकारी नहीं;

बल्कि हमारे हितैषी थे।

उन्होंने मेरे पैरों की बेड़ियाँ खोलीं

और अपनी कमान में साधने लगे,

उन्होंने मुझे शिकार नहीं,

बल्कि...

अपने शिकार का जरिया बनाना चाहा।

-0-

 

2-संझा -बाती

 

दोपहर की तपिश में 

जैसे जैसे 

चढ़ती हैं सीढ़ियाँ

फूलती है उनकी सांसे और 

उतरते- उतरते  रुँध जाता है गला.

 

जाने कितनी ही औरतें हैं 

जो कुहकती है

सिसकती हैं और 

पलटवार न करने में ही आस्था रखती हैं।

 

देव- मंदिर की किसी पवित्र दिये की 

मद्धम लौ की भाँति 

आधी सोई, आधी जागी 

उनकी आँखें 

कितनी निश्चल और शांत 

इस इन्तजार में कि 

भक्तों से अटा उसका

प्रांगण खिलता है 

परंतु

देवताओं के प्रवेश से 

खुल जाते हैं उनके मन के कपाट

 

जीवन है संझा बाती 

और उसकी लय, गति और यति।

-0-