माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
खोलो मोखे मन के
धूप मुहब्बत की
आने दो छन- छनके।
2
दरवाज़ा खड़का है
शायद वो आए
मेरा दिल धड़का है।
3
होठों पे आह नहीं
तुम जब अपने हो
कोई परवाह नहीं।
4
तुमको जिस पल पाया
हर इक मुश्किल का
मैंने तो हल पाया।
5
हर रोज सँवरने दो
मन में चाहत का
अहसास न मरने दो।
6
तेरे ही पास मुझे
हरदम रखता है
तेरा अहसास मुझे।
7
बोले ये दिल धक से
मुझको अपना तुम
कहते हो जब हक़ से।
8
जीवन को सींच रही
मीत मुहब्बत ये
जो अपने बीच रही।
9
वो पास नहीं होता
मुझको जीने का
आभास नहीं होता।
10
तुम मुझको गैरों में
हरगिज़ ना गिनना
पड़ती हूँ पैरों में।
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