मुक्तक
डॉ. सुरंगमा यादव
1.
मिले तूफान राहों में, हमें पर रोक ना पाए
कभी इरादों की स्याही, समन्दर टोक ना पाए।
जो जुनूँ का इक दरिया हमारे दिल में बहता है
लाख सूरज तपे लेकिन, उसे वह सोख ना
पाए॥
2.
कोई मौसम, कोई रस्ता, हमें बस चलते जाना है
दिखाए व़क्त अग़र तेवर, नहीं इक आँसू बहाना है।
पसारे भुजाएँ कब रास्ते ये हम सबको बुलाते हैं
अगर पाना है मंज़िल तो क़दम
ख़ुद तुमको बढ़ाना है॥
3.
सजे दीपक के संग ज्योति तब दीपक सुहाता है
हो जब अक्षत-संग रोली तभी टीका भी भाता है।
है नारी प्यार की मूरत, बिन उसके कहाँ घर है
बिन मूरत के मंदिर भी कहाँ मंदिर कहाता है॥
4.
है नारी- मन तपोवन-सा, प्रेम-करुणा लुटाता है
जो करता मान नारी का, वही सम्मान पाता है।
बिछाकर राह में काँटे क्यों परखते बल तुम उसका -
है वही काली, वहीं लक्ष्मी, वही बुद्धि प्रदाता है॥
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