पथ के साथी

Thursday, March 17, 2022

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 डॉ. सुरंगमा यादव

दोहे

1

होली के उल्लास का, कुछ मत पूछो हाल
हर मुखड़े पर रंग है, सब मिल करें धमाल।।
2
होली की यह रीत है, बरसे सब पर प्रीत
देख कमाल गुलाल का, रूठे मन लें जीत
3
साजन से अँखियाँ मिलीं, मुखड़ा हुआ अबीर
मन तेरे ही रंग रँगा अब मत करो अधीर।।
4
फागुन मस्ती में भरा,मादकता चहुँओर
मन सौरभ-सौरभ हुआ, ठहरे न एक ठौर

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2-कुण्डलिया

डॉ. उपमा शर्मा

होली बिन खेले हुई, मैं ते ऐसी लाल।

तुमने जब से है भरा, उर ये प्रेम-गुलाल।

उर ये प्रेम गुलाल,धूम होली की न्यारी।

रंगों की भरमार,रँगी प्रियतम की प्यारी।

पिचकारी की मार, और ये हँसी -ठिठोली।

भूली सब कुछ आज, सजन,मैं तेरी हो ली।

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3-वसंत और फागुन

 डॉ. सुरंगमा यादव



वसंत और फागुन ने देखो
मिलकर रंग जमाया!
दोनों हैं रंगरेज सखी
एक ने पहले मन रंग डाला
दूजे ने फिर तन भी
इनके आने की आहट से 
सबका मन हर्षाया
आँखों में सरसों की आभा
साँसों में अमराई
कोयल गाती पंचम स्वर में
सोया राग जगा है मन में
फागुन है मनभाया
कंत गये परदेस सखी री!
दहक उठे यादों के टेसू
चटक रंग भी फींके लगते
उन बिन सूने घर-आँगन में
रह-रह मन अकुलाया
शिशिर  विदा की है बेला
सुमन गुच्छ ले उसे भेंटने
खिला वसंत नबेला
धूप सयानी देखकर
दिवस मगन मुसकाया
ऋतु आयी अनुकूल बड़ी
होली का उल्लास बढ़ा
वन-बागों ने भी उत्सव में
पहने वसन  नवीन
धरा मगन,जड़-चेतन झूमे
उर आनंद समाया

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