पथ के साथी

Monday, April 23, 2007

अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन


अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलनपंजाबी साहित्य अकादमी,लुधियाना एवं त्रैमासिक पत्रिका ‘मिन्नी’ के संयुक्त तत्त्वाधान में 15 अप्रैल 2007 को पंजाबी साहित्य अकादमी के सभागार में लघुकथा सम्मेलन का शुभारम्भ हुआ । अकादमी के अध्यक्ष डा॰सुरजीत पातर ,महासचिव श्री रविन्दर भट्टल डा॰अरुण मित्रा (मुख्य अतिथि) , श्री भगीरथ (कोटा) ,श्री सूर्य कान्त नागर (इन्दौर) ,श्री सुकेश साहनी (बरेली),श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल (कोटकपूरा), डा॰श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’ (अमृतसर) मंच पर उपस्थित थे ।इनके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों से आए हिन्दी एवं पंजाबी के कथाकार -समीक्षक मौजूद थे ।इनमे थे –सर्वश्री सुभाष नीरव ,बलराम अग्रवाल (दिल्ली) सुरेश शर्मा (इन्दौर) ,अशोक भाटिया (करनाल) , डा॰सुरेन्द्र मंथन (बंगा) , डा॰अनूप सिंह(बटाला),हरभजन सिंह खेमकरणी(अमृतसर), विक्रमजीत सिंह ‘नूर’(गिद्द्ड़बाहा),सुरिन्दर कैले (ठक्करवाल), रत्नेश (चंडीगढ़) ,जसवीर चावला ,हरप्रीत राणा निरंजन बोहा,रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ आदि। इस सम्मेलन की अध्यक्षता की सुप्रसिद्ध पजाबी कवि एवं पंजाबी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा॰सुरजीत सिंह पातर ने । हिन्दी –पंजाबी का यह सम्मेलन श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल एवं डा॰श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’के प्रयासों से निरन्तर 18-19 वर्षों से आयोजित किया जा रहा है । यह सम्मेलन हिन्दी एवं पंजाबी का संयुक्त प्रयास होने के कारण दिल्ली , पंजाब ( अमृतसर ,कोटकपूरा,मोगा ,कपूरथला,बटाला) हरियाणा (सिरसा , करनाल) ,हिमाचल(डलहौजी) उत्तर प्रदेश(बरेली) आदि विभिन्न स्थानों पर आयोजित हो चुका है ।इस सम्मेलन का उद्देश्य है हिन्दी –पंजाबी भाषा के लेखकों के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों को एक- दूसरे के निकट लाना और एक साझी लेखकीय समझ और विचार –विमर्श को विकसित करना ।
डा॰सुरजीत पातर ने विश्व लघुकथा संग्रह ‘मिन्नी कहाणी दा संसार’ या । जसवीर चावला की दो हिन्दी पुस्तकों- ‘सच के सिवा’ और ‘आतंकवादी’ का विमोचन किया गया ।


डा॰कुलदीप सिंह ‘दीप’और डा॰अनूप सिंह ने पजाबी-हिन्दी लघुकथाओं का विश्लेषण करते हुए वर्तमान सामाजिक सरोकारों की ज़रूरत पर बल दिया,। डा॰दीप ने ‘मिन्नी कहाणी दे ग्लोबली सरोकार’ में खुले बाज़ार के समर्थन एवं विकास के छद्म प्रचार को रेखांकित करते हुए आने वाले ख़तरों से आगाह किया कि यह सब नियोजित ढंग से किया जा रहा है ,आने वाले समय में जिसके दुखद परिणाम होंगे । लघुकथाओं के सन्दर्भ में डा॰दीप ने अपनी बात की पुष्टि की ।इनमें सूर्यकान्त नागर (प्रदूषण) ,निरंजन बोहा (शीशा) ,धरम पाल साहिल (सोच) ,विक्रम सोनी (छित्तर की जात-जूते की जात) श्याम सुन्दर अग्रवाल (रांग नम्बर) आदि का उल्लेख किया ।
इसी क्रम में डा॰अनूप सिंह ने लघुकथा के विषय एवं रूप पक्ष पर अपनी सधी हुई भाषा में विचार व्यक्त किए । डा॰ सिंह ने विश्व की विभिन्न भाषाओं के उदाहरण देकर अपनी बात की पुष्टि की ।उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा-भाषण , दोस्तों के साथ की गई गपशप लघुकथा का विषय नहीं बन सकते हैं । चुश्त संवाद एवं व्यंग्य की विशिष्टता रचना को प्रभावशाली बनाने में सहायक होते हैं।
तत्पश्चात डा॰ अशोक भाटिया , सुभाष नीरव निरंजन बोहा ,सूर्यकान्त नागर सुकेश साहनी , बलराम अग्रवाल ने अपने विचार प्रकट किए । सुभाष नीरव ने वाह ! से आह ! तक विस्तार पाने वाले बाज़ारवाद के भयावह परिणाम से सचेत किया । लघुकथाओं में इन नवीन विषयों की प्रस्तुति पर संतोष प्रकट किया ।
श्री सुकेश साहनी ने आज विश्व लघुकथा की विमोचित पुस्तक ‘ मिन्नी कहाणी दा संसार’ पर अपने विचार प्रकट किए ।उन्होंने कहा-दीप्ति-अग्रवाल एवं नूर द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में विश्व भर की चुनी हुई श्रेष्ठ रचनाएँ आश्वस्त करती हैं कि लघुकथाओं का भविष्य उज्ज्वल है।लघुकथाओं में पिछले तीस वर्षों से परिवर्तन देखने को मिलता है । सजग लेखक भविष्यद्रष्टा होता है ।समय की पदचाप उसकी रचनाओं मे महसूस होने लगती है ।रचना का सन्देश महत्त्वपूर्ण होता है। यदि ऐसी रचना शिल्प के स्तर पर कमज़ोर है तो उस पर मेहनत करने की ज़रूरत है ।
डा॰सूर्यकान्त नागर ने सचेत किया कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने उत्पादों के साथ अपने विचारों को भी हमारे मन-मस्तिष्क पर थोप रही हैं। रचना कला एवं रचनात्मक कल्पना के साथ हमारे सामने आए। रचना में जो कुछ अनकहा होता है , वही रचना की सबसे बड़ी ताकत है।
इस अवसर पर श्री भगीरथ को उनके लघुकथा में किए गए अवदान के लिए सम्मानित किया गया ।इसी अवसर पर पंजाबी लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया ।
डा॰सुरजीत पातर ने विश्व लघुकथा संग्रह ‘मिन्नी कहाणी दा संसार’ का विमोचन किया । जसवीर चावला की दो हिन्दी पुस्तकों- ‘सच के सिवा’ और ‘आतंकवादी’ का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया ।डा॰पातर ने
अपने अध्यक्षीय भाषण में डा॰सुरजीत पातर ने कहा-‘सरल लिखना बहुत कठिन है (सोखा लिखणा बहुत ओखा) हमारे जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना-बात का बहुत महत्त्व होता है ।हम समाज को बदल पाएँ या न बदल पाएँ ;हमें कोशिश तो ज़रूर करनी चाहिए। डा॰पातर ने जलते पेड़ की आग बुझाने का असफल प्रयास करने वाली चिड़िया का उदाहरण देकर अपने विचार को रेखांकित किया।सबके अनुरोध पर डा॰पातर ने मधुर स्वर में ‘कभी दरिया इकल्ला तै नहीं करदा दिशा अपणी’ ग़ज़ल सुनाई ,जिसके प्रभावशाली अशआर ने श्रोताओं को भाव –विभोर कर दिया।कार्यक्रम का संचालन डा॰ श्यामसुंदर ‘दीप्ति’ ने किया ।श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ।


प्रस्तुति:- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
प्राचार्य
केन्द्रीय विद्यालय आयुध उपस्कर निर्माणी
हज़रतपुर ज़ि0 फ़ीरोज़ाबाद (उतर प्रदेश) 283103