1-प्रार्थना
अनिता मंडा
तेज़ हवा
आँधी से धीमी बह रही है थोड़ी- सी
सड़कों के किनारे छिप गए हैं सूखे पत्तों से
हवा के इशारों पर नृत्यरत हैं भूरे धूसर
पत्ते
पटरी के बीच खड़े पीपलों से झाँक रहे हैं
नए, कोमल,
चिकने
छोटे बच्चे की हथेलियों- से नाज़ुक पत्ते
पुराने पत्तों को रौंदती
नए पत्तों को अपने सायरन की आवाज़ से
दहलाती
एम्बुलेंस दौड़ती हुई ओझल हो गई दृष्टि से
पत्ते-सा काँपता मन
दोहरा रहा है प्रार्थनाएँ।
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2- कृष्णा
वर्मा
1-रेगिस्तान
रेतीली आँधियाँ न होतीं
तो कौन जगाता मेरे
शुष्क हृदय में प्रेम
तुम्हीं से तो है
मुझ रेगिस्तान की पहचान
तुम्हारी बलखाती
लहराती अदाएँ
दीवाना बना देती हैं मुझे
यूँ ही रपटकर
समेटे रहना मेरा वजूद
अपनी नर्म बाहों में
साँझ ढले तुम्हारे आँगन
में उतरती शीतलता
सुकून है मेरी नींदों का
तुम्हारे प्रेम की विशालता ने
देखो कितना
विस्तृत कर दिया है मुझे
सच में
प्रेम के अनंत को
बड़ा परहेज़ होता है
मेड़बंदियों से।
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2-रेत
मेरी कोमल देह पर
पाँव रखकर
सुकून पाने वाला
भूल न जाना
मेरी तपन के तेवर
मुझे मुट्ठियों में भींचने की
जी तोड़ कोशिश करने वाला
स्वयं तोड़ बैठता है अपनी
क्षमता का भ्रम
समन्दर
भी नहीं बाँध पाता मुझे
जानता है
आज़ाद ख़्याल रेत की
फ़ितरत नहीं होती
मुठ्ठियों की कैद में रहना।
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3-पूनम सैनी
1
कुछ ना कुछ तो उन्हें भी कहना है
कुछ ना कुछ बात अभी बाकी है
क्यों इन आँखों में उमड़ा है सागर
फिर भी बरसात अभी बाकी है
लब तो चुपचाप से ही रहे लेकिन
दिल की सौगात अभी बाकी है
वक़्त बेचैन है रुखसत को कितना
और मुलाकात अभी बाकी है
टकराके पत्थर से बिखरा है दिल
दिल में जज़्बात अभी बाकी है
यूँ तो दुनिया से बहुत हमको मिला
थोड़ी सी रात अभी बाकी है
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2-कुछ तो लिखना था
उस रोज़ जब उठाई थी कलम
कुछ तो लिखना था
जरूरी था कि तूफान भीतर दब ना जाए
किनारों से गुज़ारकर सब उड़ेल देना था
कुछ तो लिखना था
बहुत भारी था पत्थर जो दिल पर गिरा था
भारी मन की भारी बातों का भार
जैसे घोंट रहा था दम शब्दों का
किनारे तोड़ समंदर आँखों से बह चला था
मगर धुँधलाती आँखों को
कँपकँपाते हाथों का साथ देना था
आखिर कुछ तो लिखना था
ज़िन्दगी के थपेड़ों से टूटे दिल के टुकड़े समेट
रख लेने थे कागज़ात पर
बार- बार चुभने से सफर ज़ख्मी होता ज़िन्दगी का
समझा बुझा के दिल के टुकड़े समेट तो लिये थे
वक़्त की सीख से उन्हें फिर जोड़ देना था
उस दिन ... कुछ तो लिखना था