पथ के साथी

Sunday, April 5, 2020

967-दीप जलाएँ


1-ज्योति जगाएँगे
  रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

शुभ संकल्प हृदय में जागें, दुनिया को सुखी बनाएँगे।
रोग-शोक घर-घर से भागें, मिल ऐसी ज्योति जगाएँगे।

दीप हमारे मन की ताकत, आशा का उजियारा है।
दीप नाश की कालरात्रि का, हर लेता हर अँधियारा है।
घर जलाने वाले  कभी क्या,  आँगन में दीप जलाएँगे?
जो मरघट में पूजा करते, वे  गीत नाश के गाएँगे।

जिनके मन की दया मरी है, अब उनका शोक मनाना क्या!
परहित जिनके लिए पाप है,  उनके नाम गिनाना क्या!
विष-बाणों से करें आरती, अब उनको क्या समझाएँगे!
हम तो उजियारे के रक्षक,  जो सिर्फ रोशनी लाएँगे।
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 2- दीप जलाएँ
डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

आओ साथी 
मिलकर हम सब 
दीप जलाएँ !

आशंकाएँ तैर रही हैं
समय विकट है,
आज मनुजता पर लगता
गहरा संकट है;
सहमे-सहमे -से 
लोग खड़े है,
मौसम ने भी अनायास 
तेवर बदले हैं
झंझावाती आँधी की 
भीषण बेला में
आओ साथी 
हम मधु ऋतु के गीत सुनाएँ
हर गवाक्ष पर एक दीप
जब मुस्काएगा
कैसा भी हो घना तिमिर
छँट ही जाएगा
मायावी वृत्तियाँ स्वयं
भय से भागेंगी
वेद।-ऋचाएँ हर आँगन में
फिर जागेंगी
हर ड्यौढ़ी में नित प्रति ही 
छूटें फुलझड़ियाँ
हम सब मिलकर
यूँ प्रकाश का पर्व मनाएँ !
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3-गुंजन अग्रवाल

जीवन मे जब भी कभी, दुख का हो अहसास।
जला दीप लोबान का, जाना शिव के पास।
जाना शिव के पास, उमापति वो त्रिपुरारी।
पल में हरदें कष्ट, सभी भोले भंडारी।
जय हो भोले नाथ,शिवालय होती गुंजन
जाना शिव के द्वार, कष्ट यदि आ जीवन।
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