पथ के साथी

Thursday, February 27, 2014

वह दौर यह दौर

मंजु मिश्रा

(माँ-बाप की तरफ से कुछ शब्द अपने बड़े हो गए बच्चों के लिए आजकल घर-घर में ये फिकरे आम हो गए हैं- "you don't know mom/dad  or you won't understand it"- बस उसी अनुभव से उपजी यह कविता )
हमें नादाँ समझते हो, और ये भूल बैठे हो
हमीं ने उँगलियाँ थामीं तो तुमने चलना सीखा है
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न होते हम अगर उस दौर में तो तुम जरा सोचो
गिरते और सँभलते कितनी चोटें खा गए होते
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मगर ये फर्ज था माँ-बाप का, कर्जा नहीं तुम पर
न रखना बोझ दिल पर और चुकाने की न सोचो तुम
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जहाँ भी तुम रहो खुशहाल बस इतनी- सी ख्वाहिश है
 हमारा क्या है अपनी जिंदगी तो जी चुके हैं हम
                   **



Tuesday, February 25, 2014

जीवन के बहाने -दो कविताएँ

1-कुर्सी और कविता
कमला निखुर्पा
कुर्सी जीने नहीं देती
कविता मरने नहीं देती
चारों पायों ने  मिलकर जकड़ रखा है
उड़ने को बेताब कदमों को

हाथों में थमी कलम
दौड़ने को विकल

कल्पना की घाटी में
जहां फूलों की महक में
कोई सन्देश छुपा है
जहां पंछियों के कलरव में
 मधुर संगीत गूंजा है
 अभी-अभी जहां बादलों ने
 सूरज से आंखमिचौली खेली है

वो प्यारी सी रंगीन डायरी
जाने कब से उपेक्षित है
धूल से सनी कोने पे पड़ी
हर रोज नजर आती है
और मैं नजरें चुरा लेती हूँ

फाइलों के ढेर में डूबती जा रही कविता
टूटती साँसों के बीच
कहीं दूर से इक हवा का झोंका
कानों में कुछ कह जाता है
बंद लिफ़ाफ़े से झाँककर
खिलखिला उठती है किताबें
किताबों में पाकर अपनी खोई सहेलियों को
फिर से जी उठती है कविता

सारे बंधनों  के बीच भी
आजादी के कुछ पल
पा लेती है कविता
जी लेती है कविता |
-0-

इस कविता को पढ़कर कुछ पंक्तियाँ अनायास कलम की नोक पर आईं, कुछ इस तरह-

2-जीने को जी चाहे ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

कुछ लोग हैं इतने शातिर
कि जीने नहीं देते
और कुछ है इतने प्यारे कि
प्राण होठों पे   लगे हों
मरने को मन करे
तो प्यार का इतना अमृत उडेल देते हैं कि
मरने नहीं देते ,
क्योंकि दुनिया उन्हीं के दम पर
इतनी खूबसूरत है कि
सदियों जीने को जी चाहे ।

-0-

Sunday, February 23, 2014

खूबसूरत सफ़र

अनिता ललित
1
मेरी दूर की नज़र कमज़ोर,
पास की सही !
तुम्हारी पास की नज़र कमज़ोर,
दूर की सही !
तो चलो फिर !
तुम दूर की ज़िन्दगी सँवार लो...
मैं पास की ज़िन्दगी सँवार लूँ...
अपने 'साथ' के सफ़र को ख़ूबसूरत  बना लें हम ...!!!
       2
       जब भी मेरे दिल में कोई तूफ़ानी लहर उठती है...
       मेरी नज़रें तुम्हें तलाशती हैं...
       हाथ तुम्हारा थामकर
       मैं सुकून से खुद को उस लहर के हवाले कर देती हूँ...
       तुम्हीं मेरी कश्ती, तुम्हीं पतवार..
       तुम साथ हो जब...
       मुझे डूबने का कोई डर नहीं...
       3
       जब तुम पास होते हो ...
       सबकुछ उजला-उजला लगता है,
       मैं भरी-भरी होती हूँ … !
       जब तुम पास नहीं होते...
       सबकुछ फीका-फीका हो जाता है ,
       और मैं.बिलकुल रीती हो जाती हूँ ....
      
       -0-





Wednesday, February 5, 2014

चलो मीत

रामेश्वर काम्बोज  हिमांशु
बहुत रहे हो इस जंगल में
अब तो यारो चलना होगा ।
जिसको समझा शुभ्र चाँदनी
वह सूरज है, जलना होगा ।
सोच-समझकर सदा बनाई
हमने अपनों की परिभाषा
फिर भी खाई चोट उम्रभर
अब हर शब्द बदलना होगा।
सूरज ढलता और निकलता
इसी फेर में ढली उमरिया 
चलो मीत अब बाट पुकारे
हमको दूर निकलना होगा ।
-0-
(25 दिसम्बर-2013)

Saturday, February 1, 2014

सीढ़ियाँ गवाह हैं ...





 सीढ़ियाँ गवाह हैं ...
कमला निखुर्पा
ये  खेतों की सीढ़ियाँ  गवाह हैं ...
एक ही साँस में, जाने किस आस में.... 
पूरा पहाड़ चढ़ जाती पहाड़न के पैरों की बिवाई को ...
रोज छूती हैं ये सीढ़ियाँ खेतों की ...
ये गवाह है -पैरों में चुभते काँटों की ....
माथे से छलकती बूँदों की ... 
जिसमें कभी आँखों का नमकीन पानी भी मिल जाता है .... 
ढलती साँझ के सूरज की तरह... 
किसी के आने की आस की रोशनी भी ....
पहाड़ के उस पार जाकर ढल जाती है... रोज की तरह ... 
धूप भी आती है तो मेहमान की तरह ...कुछ घड़ी के लिए ..
पर तुम नहीं आते ...
जिसकी राह ताकती हैं ,रोज ये सीढ़ियाँ खेतों की ... 
जिसकी मेड़ पर किसी के पैर का एक बिछुवा गिरा है ... 
किसी के काँटों बिंधे क़दमों से एक सुर्ख कतरा गिरा है ...
कितनी बार दरकी है... टूटी ह ये सीढ़ियाँ  खेतों की ... 
वो पीढ़ियाँ शहरों की ....कब जानेंगी ?
 !!!!

 -0-