पथ के साथी

Saturday, May 18, 2019

902-अनुभूति



सत्या शर्मा 'कीर्ति'

बुद्ध ना सिर्फ कपिलवस्तु में थे  और 
न ही  कुशीनारा में , 
बल्कि  वे सदैव से थे 
मेरे भी मन की सुप्त गुफाओं में
क्योंकि महसूस की है मैंने भी
वह असहनीय वेदना जो
बूढ़े , बीमार और लाचार को देखकर उमड़ती है
गरीबों की दयनीयता मुझे भी 
 झकझोरकरके रख देती है
मृत्यु अनेकों प्रश्न 
उठाती है मेरे भी भीतर
हाँ , कई बार सांसारिक सुखों
से ऊबकर मेरा भी मन भर जाता है वितृष्णा से 
और चाहती हूँ मैं भी
कभी जागूँ सारी रात
मणिकर्णिका के घाट पर और
निर्बाध जलती चिताओं से
पूछूँ मोक्ष का  मार्ग
या/ मोहमाया का त्याग कर
किसी निर्जन गुफा में
लीन हो जाऊँ ब्रह्म साधना में
कई बार रातों की नीरवता में
ब्रह्मसाक्षात्कार की तीव्र
उत्कंठा जाग जाती है मुझमें भी
किन्तु पाती हूँ 
स्वीकार नहीं है मुझे बुद्ध होना
मुझे तो ज्ञान की तमाम अनुभूतियों के बाद भी
आकर्षित करती है
सांसारिक मृगतृष्णा
मुझे आकर्षित करते हैं 
माया के अनेकों प्रलोभन
तभी तो गहन ज्ञान के उच्च शिखर पर भी
क्षणिक भौतिक सुख 
अपनी बाहें पसारे बुलाती है मुझे 
और फिर अपने अंदर के बुद्ध
को छोड़ आना चाहती हूँ किसी दिन 
उसी बोधिवृक्ष के नीचे
क्योंकि पाया है मुझमें 
धैर्य नहीं 
जो परम् सत्य तक ले चले मुझे
और मैं इसी क्षणिक सुखों 
के पीछे चल पड़ती हूँ
कदम दर कदम
अनन्त यात्रा पर।