ऐसा क्यों?
सीमा स्मृति
कल शाम जब टेलीविजन चलाया
ही था कि न्यूज़ आई कि फरीदाबाद के होली चाइल्ड स्कूल के एक तेरह साल के बच्चे ने जो
आठवीं क्लास में पढ़ता था उसने स्कूल के बाथरूम में पैट्रोल डालकर अपने को आग लगा ली।
मन और सोच जैसे सुन्न पड़
गए। ये क्या है? स्कूल में पानी की बोतल में पैट्रोल डाल कर ले
गया । कसूर किस का है? माँ, बाप, टीचर,
हमारा एजूकेशन सिस्टम और समाज !कौन है इस घटना का जिम्मेदार ? प्रश्नों का एक सैलाब
हिला गया। हम बच्चों को क्या शिक्षा दे रहे हैं?आसान है एक
–दूसरे पर दोष मढ़ना ।माँ-बाप आसानी से टीचर को दोषी कह सकते हैं और टीचर के पास एक क्लास में तीस चालीस
बच्चे होने का दर्द और हर बच्चे पर वन टू वन ध्यान न दे पाने का कारण । क्या कारण होगा
कि एक इतना छोटा बच्चा जिसने अभी जीना भी शुरू नहीं किया, वह
जीवन को खत्म करना चाहता है? वह कौन- सा दबाव होगा जो उस इस हद तक सोचने को मजबूर करे?
हमारे समाज में,हमारी शिक्षा प्रणाली क्या इतनी
संकुचित हो चुकी है? क्या हम बच्चों को रोबोट बना रहे हैं?
क्या नम्बर की दौड़ में अंधे हम जीवन को ली देने वाले गहरे काले गड्ढे
नहीं देख पा रहे हैं?मन बार -बार उस बालमन की स्थिति की कल्पना नहीं कर पा रहा कि
उसे खुद को इस प्रकार दर्द देकर उस दबाब से मुक्ति पाना चाहता था। मन का हर तार,
पूर्णत: तार-तार हो रहा है।
शायद उस बच्चे के मन की बात समझने की बात तो दूर है , किसी ने
उसे कभी सुना ही नहीं। वरना इतना छोटा बच्चा ऐसे सोच नहीं पाता। वो पैंतालीस
प्रतिशत जल गया ,परन्तु अब खतरे से बाहर है पर क्या उसका शेष
जीवन खिल सकेगा।? शरीर के दाग चाहे मिट जाएँ पर मन की सलवटें
कभी क्या खत्म हो पाएँगी?
हम सभी को सोचना है कि
कमी कहाँ है ? यह एक
बच्चे कि बात नहीं यह
पूरे सिस्टम का दोष है। इस भाग -दौड़ और पागल भौतिकवादी दौड़ में अंधे हम क्या खो रहे हैं?
क्या हमारे पास बढ़िया कपड़े हैं, मोबाइल है
,घूमना फिरना, मॉल और पिक्चर सभी कुछ है पाने के
चक्कर में हम क्या खो रहे हैं कभी सोचा। सिर्फ एक बार उस बाल मन के दर्द और दबाव को सोचेगें तो भौतिकता की
हर चीज कुरूप नजर आएगी। हमें क्या बदलना है , ताकि इस प्रकार फिर कोई मासूम बचपन यूं ना जले।
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