पथ के साथी

Wednesday, July 15, 2020

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1-रिहाई
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'

आज, न जाने क्या बात है...
यूँ तो सब कुछ वही है
पर एक बेचैनी का एहसास है,
हर साल ही तो, आता है पतझड़
जाते हैं पत्ते, सरपट हवाएँ......
इस बार, फिर ऐसा क्या खास है?
कुछ होने को है!..... या शायद हो रहा है,
मेरी रूह को मानो, एक भीना सा आग़ाज़ है
आज न जाने क्यूँ , लयबद्ध सी हो रही हूँ मैं
कभी बेरहमी, तो कभी मुक्ति का आभास है...
बोरिया-बिस्तरा बाँध,
क्या पंछी, क्या गिलहरी
सभी दुबकने को तैयार हैं
हर तरफ, एक चला-चली का माहौल है.....।

मेरी इमारत में भी, कुछ खिड़कियाँ चर्रा रहीं हैं
ढीली सी साँकल, खुलने की हसरत जता रहीं हैं
भूली बिसरी यादों, वादों और शिकायतों के परिंदे
बरसों से कैद ,आस मुक्ति की लगाएँ बैठें हैं...
सोचती हूँ,
चित्र; प्रीति अग्रवाल
मैं भी अलविदा कह ही दूँ !
कब तक थामूँ, और क्यों थामूँ?
आज लौटा ही दूँ उन सबको
जो छटपटा रहें हैं मुझमें, रिहा होने को
आज कह ही दूँ हवाओं से -
लो! इन सब को भी उड़ा ले जाओ
संग अपने, दूर बहुत दूर.....
और, मैं भी आज उठूँ और खड़ी हो जाऊँ,
बेख़ौफ़, बिन मुखोटे, बेझिझक, बेपरवाह,
इन स्वाभिमानी, दरख़्तों की तरह !!!
-0-
2-मील का पत्थर
अर्चना राय

बेमतलब कट रही थी जिंदगी
 जिसका कोई मर्म न था

बेजान-सा था दिल
 कोई न स्पंदन था।
 तन्हा था मन
 कोई हमदम न था।
 मिलकर तुमसे.....
 लगा  लक्ष्य मिल  गया 
जीने का एक नया
 आयाम मिल गया 
साथ अपने हजारों
  सपने दे गया,
 इस बेमानी दुनिया में
 जीने के मायने दे गया 
सूने दिल को सरगम दे गया।
 तन्हा मन को गुलजार कर गया
 हाँ मैं भी हूँ, मेरा भी अस्तित्व है बाकी
 मेरे होने का एहसास भर गया
 मेरा लेखन 
 जीवन में मेरे.....
 मील का पत्थर बन गया।
-0-

3- आँखों में नमी
 मुकेश बेनिवाल
  
आँखों में नमी लेकर
मुस्कुराते तो बहुत हो
कुछ नहीं है कहकर
छुपाते तो बहुत हो
झरोखों से झाँक ही लेते हैं
ये कमबख़्त अश्क
पलकों के पर्दे
गिराते तो बहुत हो
-0-