पथ के साथी

Wednesday, February 1, 2023

1282-क्षणिकाएँ

कृष्णा वर्मा

 1

सपने गुणा करते-करते 

घटा हो गए अपने

हासिल हुआ अहं।

2

नज़र जब

मंज़िल पर टिक जाए

तो मुक्त नहीं होते हैं पाँव

यात्रा से।

3

श्वेत रंग में जो होती वफ़ा

तो नमक भी होता

ज़ख़्मों की दवा।

4

ओढ़कर   

तुम्हारी प्रीत का

पशमीना

पा लेते हैं ऊष्मा

मेरे कँपकँपाते ख़्याल।

5

ग़ज़ल न होती तो

चंद शब्दों में 

कौन समेटता 

आग को।

6

भट्टी में पककर भी

रहता है ठंडा मिट्टी का घड़ा

जानता है

मिट्टी से बने को अंतत: 

मिट्टी ही होना है।


7

रिश्ते में मजबूती हो तो

बिना कहे ही

होते हैं महसूस।

8

अपनों के साथ जब

खड़े हो जाते हैं अपने

फिर चाहे हो मरुथल

हो जाते हैं हरे।

9

कौन बचा है प्रेम से

प्रेम पाने वाले

प्रेम में लिखते हैं कविताएँ

प्रेम से वंचित

लिखते हैं कविताओं में प्रेम।

10

पुण्य किसी का

दुश्मन नहीं और

पाप किसी का

सगा नहीं।

11


ज़रूरी नहीं

उपहार कोई वस्तु ही हो

इज़्ज़त और परवाह भी तो

किसी उपहार से कम नहीं।

12

समय न हराता है

न जिताता है

समय तो केवल

सिखाता है।

13

धोखा देने वाला क्या जाने

धोखा सहने वाला

स्वयं को ईश्वर के कितना

निकट महसूस करता हैं।

14

दिलों में रहने वाले लोग

अक्सर किस्मत की सूची में

नहीं लिखे होते।

15

किस काम की

शर्मसारों की शर्म

जो दूसरों की बेशर्मी देखकर

साधे रहते हैं चुप्पी।

16

दाने के मोह में

जाल में फसने वाले

तरस जाते हैं

उड़ानों के लिए।

17

मन ही मन

दोहराते हैं अब बीती बातें

बचा ही कौन अपना

जो सुनकर हुंकारा भरे।

18

संभल के लगाएँ

बुझी राख को हाथ

आख़िर इसके सीने में

पलती है आग।

19

आप और तुम में

बस इतना ही फ़र्क है

तुम के कांधे पर

हाथ रखकर

दिल खोलकर कर सकते हैं

दर्द बयानी।

20

बड़ी सयानी होती हैं

मुस्कुराहटें

लगा देती हैं लगाम

हमारी भावनाओं पर।

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