बीती हुई बातों से
बिछुड़कर नहीं देखा ,
क्यूँ पास में थे पंख
फिर उड़कर नहीं देखा ।
वो प्यास से तड़पा बहुत ,शहरी गुरूर में ,
था गाँव में पनघट,
मगर मुड़कर नहीं देखा ।
कुछ भी कठिन नहीं था,रही इक भूल हमारी ,
बस एक ने भी एक से
जुड़कर नहीं देखा ।
बेपर्दगी ,
गुरबत का दर्द झेलना पड़ा ,
जब पाँव ने चादर में
सिकुड़कर नहीं देखा ।
ये नफरतों की आग बुझे
भी तो किस तरहा ,
आँखों के समंदर ने
निचुड़कर नहीं देखा ।
12-04-2013