पथ के साथी

Friday, July 18, 2014

चार कविताएँ


1-तीन प्रश्न
रेखा रोहतगी
1
प्रश्न होता है
पहला कदम
उत्तर-अनुगमन
और प्रत्युत्तर-   वहीं रुक जाना
मेरा मौन रह जाना
कुछ भी न कहना
मेरी  स्वीकृत पराजय नहीं
तुष्टि भी नहीं
सिर्फ़, मेरा आगे बढ़ना है।
2-
कवि
वह शिल्पी है
जो शब्दों से कविता की अट्टालिका
खडी करता है
फिर उसमें-
किसी के कर्णपुट
किसी के नयन
किसी का हृदय
बंदी बनाकर रखता है।
3-
दैदीप्यमान
प्रकाशपुंज
ज्योतिस्वरूप
रश्मिरथी -  सूर्य
जिसकी  उपस्थिति मात्र ही
समूचे अंधकार को निगल  लेती है
उस सूर्य के सम्पूर्ण अस्तित्व को
मेरी इन छोटी-सी आँखों ने
निरस्त कर दिया
जो खुली ही नहीं
अँधेरा समेटे मुँदी ही रहीं

-0-

2- खुद से सवाल             
        सुभाष लखेड़ा     

मोटे पोथों में हम सभी रात - दिन
न जाने क्यों अपना सर खपाते हैं ?
एक उम्र गुजर जाने के बाद भी हम
अपने को ही कहाँ समझ पाते हैं ?
जिन्हें ताउम्र मानते रहे करीबी
वे अब क्यों दूर नजर आते हैं ?
सोच - समझ कर कभी जो किया
उसे लेकर हम अब क्यों पछताते हैं ?
यूँ सवाल सिर्फ एक नहीं, अनेक हैं
हम उन सभी को हल कहाँ कर पाते हैं ?
अपने को बुद्धिमान साबित करने हेतु
हम अक्सर दूसरों को क्यों दोहराते हैं ?
हम से बड़ा मूर्ख  यहाँ कोई दूसरा नहीं
इस सच्चाई को हम भूल क्यों जाते हैं ?
-0-