डॉ. वर्षा सिंह को शत-शत नमन!!
गिरीश पंकज
सागर की रहने वाली वर्षा सिंह से मेरी कभी भेंट नहीं हुई । वे मेरी फेसबुक फ्रेंड भी नहीं थीं,
लेकिन उनकी रचनाओं से मैं लंबे समय से परिचित रहा हूं। मेरा सौभाग्य है कि लगभग तीन वर्ष पूर्व वर्षा जी ने अपने ब्लॉग 'ग़ज़लयात्रा' में 16 अक्टूबर, 2018 को मेरी ग़ज़लों पर कुछ टिप्पणी की थी। उसे मैंने फिर खोजा। उसका एक अंश विनम्रतापूर्वक यहाँ देना चाहता हूँ, ''गिरीश पंकज ऐसे रचनाकार हैं, जो अनेक सामाजिक विषयों पर अनेक विधाओं में लगातार लेखन कार्य कर रहे हैं। उनका लेखन समाजोपयोगी है। जिस तरह पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से जीवन को जारी रखने के लिए पोषक तत्त्वों का निर्माण होता है ,वैसे ही संवेदनाओं को जीवित रखने के लिए गिरीश पंकज की ग़ज़लों में निहित उत्प्रेरक तत्त्व प्रेरणा स्रोत का काम करते हैं। उनकी यह ग़ज़ल देखें, जिसमें सूर्य के प्रकाश सी ऊर्जा है।..गिरीश पंकज शायरी के नए प्रतिमान गढ़ने में सिद्धहस्त हैं।'' वर्षा सिंह की यह टिप्पणी मेरे जीवन की अनमोल धरोहर बन गई है। मैंने वर्षा जी का नंबर खोजकर उनसे बात की और धन्यवाद ज्ञापन किया। वर्षा की बहन डॉ शरद सिंह से मेरा परिचय रहा है । अनेक मौकों पर शरद सिंह से मेरी मुलाकात भी हुई, लेकिन वर्षा जी से कभी भेंट नहीं हुई । बावजूद इसके, उन्होंने मेरी ग़ज़लों पर लिखा। यह लिखना ही उनकी उदारता का, विशालता का परिचायक है । वर्षा सिंह का पूरा लेखन लोकमंगल, लोक कल्याण का लेखन रहा है। उनका जाना हिंदी साहित्य की एक बड़ी क्षति है। उनको नमन करते हुए मैं उनकी एक ग़ज़ल जो उन्होंने विश्व शांति दिवस के अवसर पर फेसबुक में पोस्ट की थी, तथा उनके ब्लॉग से एक गीत एक गीत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । आप भी उनके फ़ेसबुक/ ब्लॉग को देख कर उनके लेखन से परिचित हो सकते हैं।
1-शुभकामना
डॉ. वर्षा सिंह
दे रहा मन
हो विह्वल, शुभकामना।
नित खिले सुख का कमल, शुभकामना।
आज के सपने सभी साकार हों
और बिखरे हास कल, शुभकामना।
मुक्त कोरोना से हो
संसार ये
हर कदम पर हों सफल, शुभकामना।
ज्योत्स्ना बिखरे सदा सुख -शांति की
है यही निर्मल- धवल, शुभकामना।
नित्य ‘वर्षा’ हो सरस आह्लाद की
पल्लवित हो नित नवल, शुभकामना !
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2-(विश्व कविता दिवस पर प्रस्तुत एक गीत)
-डॉ. वर्षा सिंह
आज चलो गाएँ ज़रा, धरती के गीत।।
धरती के गीत, धरती के
गीत।।
गीत प्रतिबंधों के, गीत अनुबंधों के
गीत संबंधों के, गीत रसगंधों के
आज चलो गाएं ज़रा, धरती के गीत।।
धरती के गीत,धरती के गीत
।।
अलसाई रात के, अँगड़ाती भोर के
नदिया के पानी में,उठती हिलोर के
शरमाते चंदा के, रंगराते सूरज के
अम्बर में उड़ते पंछियों के शोर के।
गीत कुछ उपवन के, गीत कुछ मधुबन के
गीत कुछ देहरी के, गीत कुछ आँगन के
आज चलो गाएँ ज़रा,धरती के गीत।।
धरती के गीत,धरती के गीत
।।
किशोरी झरबेरी के, बूढ़े बबूल के
हवाओं में झूलते बरगद के मूल के
बाँस
के, कपास के,युवा अमलतास के,
अरहर के, मेथी के, इमली के फूल के
गीत कुछ तरुवर के, गीत गुलमोहर के
गीत कुछ पतझर के, गीत कुछ अंकुर के
आज चलो गाएँ ज़रा, धरती के गीत।।
धरती के गीत,धरती के
गीत।।
लहराते सागर के, नैया के, पाल के
खेत - खलिहान के, पगडंडी, चौपाल के,
बादल के, ‘वर्षा’ के, गागर के, निर्झर के,
तृप्ति के, प्यास के, धूल के, गुलाल के,
गीत बौछार के, गीत कुछ प्यार के
गीत त्योहार के,
गीत अभिसार के
आज चलो गाएँ ज़रा, धरती के गीत ।।
धरती के गीत,धरती के गीत
।।
(https://varshasingh1.blogspot.com)