पथ के साथी

Monday, July 29, 2019

919


क्षणिकाएँ
1-प्रियंका गुप्ता
1
यादें-
जैसे एक आँच लगी हो उँगली में
और तिलमिला जाए मन;
या फिर
अँधेरे में
लगी हो एक ठोकर
बिन दिखे घाव में
दर्द भयंकर;
तकलीफ़ तो होती है-
है न ?
2
यादें-
जैसे सर्द हवा में
बोनफायर के सामने बैठ
हाथ तापना;
या फिर
किसी रेगिस्तान में 
झुलसने से पहले
नखलिस्तान का मिल जाना;
राहत तो मिलती है-
है न ?
3
अकेलापन
जैसे सीली सी धूप में
गीले कपड़े सुखाना
या फिर
आसमान की नमी को
आँखों में छुपाना;
बहुत देर नमी रहे तो
फफूँदी लग जाती है-
है न ?
4
अकेलापन
जैसे किसी अनजानी कील से
टीसता छिलापन
या फिर
गर्म धूप में भागते हुए
झुलसा पैर;
किसी को समझाओगे कैसे
बहुत दर्द होता है-
है न ?
-0-
2-तुम्हारे लिए
मंजूषा मन

सावन
तुम्हारे लिए
आसान था कह देना
मेरी नौकरी को
दो टकियन की,
पर दो टके की इस नौकरी से
पलते कितने ही पेट
इसी से आती है अम्मा की दवा,
इससे बच्चे जा पाते हैं स्कूल
भले ही होगा लाखों का
तुम्हारा सावन
पर दो टके की न कहो
मेरी नौकरी को।
-0-