पथ के साथी

Wednesday, February 14, 2024

1403-प्रेम -दिवस

 

डाॅ. सुरंगमा यादव

1


दर्द या प्रेम

जीवन में समाए

ढाई आखर।

2

स्पर्श तुम्हारा

रोम-रोम में फूटी

नेह की धारा।

3

भावों का मेला

कंपित हैं अधर

बीते न बेला।

4

तुम्हें देखके

खिल उठे जलज

नैन जल में।

5

मन धरा पे

तुमने बोये स्वप्न

सींच रही मैं।

6

जादू तुम्हारा

नयन स्वप्नशाला

बने हमारे।

7

मिलती हार

क्रोध से जीता कौन ?

किसी का प्यार।


8

सुनो ओ प्रिय !

सर्दी की धूप सम

तुम हो प्रिय।

Tuesday, February 6, 2024

1402

 

कृष्णा वर्मा

1

हमसे द्वेष करने वाले

हमसे दूरी तो रखते हैं

पर अपने दोस्तों के बीच

बात हमारी ही करते हैं। 

लाख बोले कोई 

मिश्री- सी ज़ुबान  

झलक ही जाती है 

स्वभाव की उग्रता।

3

करें जब शब्द 

लगाई बुझाई तो 

शक़ की तपिश से 

सूख जाते हैं  

प्यार के झरने। 

4

भीतर बाहर शून्य 

शून्य है चारों ओर 

अपने संग निपट अकेला

फिर मैं-मैं का शोर।  

5

औलाद से मिली ख़ुशियों की

ज़मानत होती है

माँ-बाप के चेहरे की मुस्कान।  

6

ज़ुल्म सहने और 

आँसू पीने में 

माहिर न होती औरत

तो 

ना यह चमन होता

ना अमन 

होतीं 

केवल वीरानियाँ।

7

औरत के चेहरे पर 

खिंची एक-एक लक़ीर 

एक-एक झुर्री

साक्षी होती है 

संचित अनुभवों की।

8

किसे चाहिए दोस्त आज

हँसने-हँसाने के लिए 

फ़ोन ही काफ़ी है 

दिल बहलाने के लिए 

सब रिश्ते नाते 

भुलाए बैठे हैं 

अभासी दुनिया को 

अपनाए बैठे हैं 

अंतिम सफ़र में 

चार कांधों का

जाने क्या हिसाब 

लगाए बैठे हैं।

9

पीहर आकर बेटी

माँ के कांधे पर

उडेलते हुए अपने दुख  

क्यों भूल जाती है 

बरसों से सह-सहकर

बूढ़ी हुई माँ की  

दुखों वाली गठरी 

हो जाएगी और भारी

कैसे ढो पाएँगे  

उसके क्षीण काँधे

दोहरे दुख। 

10

शिकारियों की शौर्यगाथाओं में 

लिखे जाने वाले 

हिरणों का इतिहास नहीं मैं

औरत हूँ- नश्तर की नोक

योगमाया अवतार संघार 

परिचित हैं मुझसे संसार   

जिसके एक पग की थाप 

बहुत है क्रांति के लिए

राधा मीरा सीता ही नहीं 

सत्यवान की 

सावित्री है औरत 

सबल सरल सहज 

निश्चल निर्मल 

प्रेम ही प्रेम

ईश्वर की अद्भुत 

सुंदरतम कृति 

औरत ही है

समस्त संसार का जीवन।

-0-

 

 

 

 

 

Saturday, February 3, 2024

1401

 

1-मेरे राम

डॉ . शिप्रा मिश्रा

 


हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

जन- मन के अनुरागी राघव

हर्ष- विषाद समभागी राघव

कमल नयन को निरख रही

मैं कितनी बड़भागी राघव

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

एक कुलश्रेष्ठ समग्र स्वयंवर में

वही श्रेष्ठ संपूर्ण आगत वर में

विदेह की भू जो पावन कर दी

सौभाग्यवती होऊँ उस कर में

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

सूर्यवंश के अविजित उद्धारक

प्रजा स्नेही उनके प्रतिपालक

हैं धीर- वीर वे धनुर्धर योद्धा

ज्ञान विवेकी स्थितप्रज्ञ संचालक

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

उन्हीं से जनम कर उन्हीं में समाना है

उन्हीं की शक्ति से अंधेरे को हराना है

हे राम! मुझमें हों समाहित समादृत

भाव पुष्प से उन तक पहुँचना है

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

-0-

2-स्वाति बरनवाल

अकेलेपन से जूझते हुए

 


दुखी हृदय  ढूँढा  नहीं जाता

आसानी से मिल जाता है,

राह चलते,

सरेआम सड़कों पर!

जेब्रा क्रॉसिंग पर रुकी

गाड़ियों की तरह।

भीड़ से लदी हुई, सीटी बजाती हुई।

 

आषाढ़,

सावन,

भादो की बारिश में

भीगना तो है,

महज़ एक बहाना

अपने ऑंसुओं को छुपाने का!

 

अकेलेपन से जूझते हुए

वे चाहते हैं!

आशीर्वाद में मिलें एक जीवंत एकांत

जिसमें झेला जा सकें

लोगों का दंभ

पाई जा सके अकेलापन से निजात

और जिया, जा सके अपने हिस्से का एकांत।

 

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-0-

 

2-बुद्धि की रोटी

 

खैर! छोड़ो!

ये तो पहले की बात थी

जब लोग बहाते थे पसीने,

जोतते थे खेत,

और चलाते थे हल!

 

उपजाते थे अनाज,

खाते थे मेहनत की दो रोटी!

मिटती थी भूख उनकी

और वो रहते थे सदा तृप्त।

 

अब की बात और है!

 

आज सुखी है वही

जो चलाता है दिमाग

साइकिल के पहियों से भी तेज़!

और खाता है

केवल और केवल

बुद्धि की रोटी!

 

जिससे तृप्त होते हैं

एक बुद्धिजीवी के तन-मन,

उनकी अतृप्त, असंख्य इच्छाऍं!

-०-

स्वाति बरनवाल (अध्ययन)

 ग्राम - कठिया मठिया, , जिला - प० चंपारण, बेतिया (बिहार)-- 845307