ज्योत्स्ना प्रदीप
01. शृंगार
रमेश गौतम |
नागफनी ने
अपने बदन को
कैसा सजाया
न दिल टूटा
न कोई
पास आया !
02. ज़िक्र
गोरी बदलियों को
फ़िक्र है
आज
काले बादलों में
उनका ज़िक्र है!!
03. अश्क़
हाँ मुझे रश्क़
होता है
जब तेरी आँखों में
किसी के
नाम का एक
अनबहा
अश्क़ होता है!
04.सौगात
कल रात
निशिगंधा के फूल
दे गए थे मुझे
अँधेरों में भी
खिलने की सौगात !
05.मेहरबान
ये मेरे
सब्र की इन्तेहाँ है
वो जो
आजकल
मुझ पर
इतना मेहरबान है!!
O6.चाँदनी
आज चाँदनी
नहीं थी होश में
उतर रही थी
दरिया के
आगोश मे !
07. क़सक
माँ बाप की
गोद में
लैपटॉप पाकर
सो गई थी छुटकी
आँसुओं में नहाकर !
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