1-माँ
डॉ. रत्ना वर्मा
हमारी माँ जो कभी
हमें तकलीफ़ में देख
दर्द दूर करने के
अनेकों उपाय करती थी
वो आज खुद दर्द में हैं
मैं कैसे दूर करूँ उनका दर्द
वो तो खुद हम सबका
दर्द समेटती आई है
कैसे पूछूं उनसे कि माँ
कैसे समेट लेती थी तुम
आँचल में हमारा दर्द
कराहती मां को देख
दर्द से भर आती हैं मेरी आँखें
अब जाकर समझ में आया
आँसूओं से भीगे उनके
आँचल का राज़
हृदय के एक कोने में
कैसे छिपा लेती थी
हम सबका दर्द
माँ ममता की खान होती है
प्यार और दुलार का
भंडार होती है
माँ और कुछ नहीं
बस माँ होती है l
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( सम्पादक उदन्ती मासिक http://www.udanti.com )
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1.
हँसली बोली हार से, कलयुग है
घनघोर।
माँ की साँसें गिन रहा, बँटवारे का
शोर।।
2.
आले-खूँटी-खिड़कियाँ, चक्की-घड़े-किवाड़।
माँ की साँसें जब थमीं, रोए बुक्का
फाड़।।
3.
माँ ने मुझको दे दिया, जो था उसके
पास।
त्याग-नेकियाँ-सादगी, अपनी पूँजी
ख़ास।।
4.
फिरकी -सी फिरती रही, दिन देखा न रैन।
बच्चों के सुख में मिला, माँ को हर
पल चैन।।
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सासू माँ को समर्पित -
5.
गहरे हों आघात या, विपदा हो
घनघोर।
पी लेती हर पीड़ माँ, लाने को नव
भोर।।
6.
हर दिन ही माँ का सखे, सौ टके की
बात।
पहले खोले आँख माँ, फिर होता
प्रभात।।
7.
इतराया है आसमाँ, कई
सितारे जोड़।
ख़ुदा ज़मीं के वास्ते, बचे सितारे
छोड़।।
8.
निश्छल माँ के प्यार- सा, मिला न कुछ भी शील।
दुनिया लपटें आँच की, माँ है शीतल
झील।।
9.
धागे-सी जलती रही, पिघला सारा
मोम।
ख़त्म हुई; रौशन हुए, माँ से जगती-व्योम।।
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3-दोनो ही अभिनय में पारंगत ! मैं और माँ
अंजू खरबंदा
कल कितने दिन बाद मिले मैं और माँ
दिल का हाल बाँटा कुछ इघर की कुछ उधर की
जब मिल बैठे मैं और माँ !
कुछ बातों में उनका मन भर आया
कुछ में आंखे छलछला आई मेरी
जब हाल बाँटने बैठे मैं और माँ !
गई थी कि खूब बातें करूँगी
जी का सब हाल उनसे कहूँगी
अपना अपना दर्द बाँटेंगे मैं और
माँ!
हम दोनों ही प्रत्यक्ष में हँस-हँसकर बोले
कितनी बातों पर हँसे दिल खोले
पर मन ही मन सब समझे मैं और माँ!
उनकी उदास आँखो ने कहा कुछ
मेरी उदास आँखो ने भी बतलाया कुछ
वास्तव में कहकर भी कुछ न बोले मैं और माँ!
बातों -बातों में कुछ उन्होंने छुपाया
मैंने भी उनको कहां सब बतलाया
एक दूसरे से कुछ कुछ छुपाते मैं और माँ!
जिस भारी मन से गई थी
भारी मन से ही वापिस
एक दूसरे को दुख न हो-दोनों ही सोचे मैं और माँ!
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दिल्ली