कविताएँ
1-शब्द
प्रियंका गुप्ता
कौन कहता है
शब्द बेजान होते हैं ?
दफ़न हों सीने में
तो
घुटती हैं साँसें
बाहर निकल भी अक्सर
वार करते है
और
मार देते हैं
किसी न किसी को
या फिर
जब घुटते रहते हैं भीतर ही
खुद मर जाते हैं
अपनी इच्छाओं/ भावनाओं समेत
उनकी मौत पर कोई नहीं रोता
सिवाय दिल के;
तो चलो, कागज़ पर उकेरें
कुछ आड़ी-तिरछी सी लकीरें
नाम दें उन्हें शब्दों का
उड़ेल दें उनमें थोड़ी प्राण वायु
ताकि फिर कभी
जब वो मरें
तो सनद रहे
कभी वो भी थे ज़िंदा...।
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2-यादों के धागे
प्रियंका गुप्ता
यादों के धागों से
बाँध रखे हैं कुछ लम्हें
जेबों में सम्हाल के रखे हुए
खनकते हैं गाहे-बगाहे
जेबें भारी हो रही
मेरे मन की तरह
सोचती हूँ
वक़्त से उधार ले लूँ
एक गुल्लक
सब लम्हें वहीँ जमा कर दूँगी
और जब होऊँगी तन्हा कभी
गुल्लक से निकालूँगी यादें
ज़रूरत भर को
और फिर
तुम्हारे आने पर
हम कर देंगे वापस वो लम्हें
गुल्लक में;
कुछ ब्याज तो दोगे न तुम ?
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