रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’

1-बाँस का वन
बाँस का बन
चिर्-चिर् करता रहा
डूबता मन
ढक देते हैं शिला
सुग्रीव जैसे जन।
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2-झील का जल
1
झील का जल
रातभर उन्मन
तट निर्जन
उगा न आज चाँद
किनसे बातें करें!
2
हो गई भोर
सूरज पुजारी-सा
आया नहाने
झील है पुलकित
मिलन के बहाने
3
बोला कोकिल
तरु की डाल पर,
लाज तिरती
झुरमुटों के पाखी
चुहुलबाजी करें
4
हुए सिन्दूरी
लहरों के भी छोर
छलक गए
वे नयन निर्मल
झील के पल-पल
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